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________________ आलस्य से हानि रहने ) के लिये सत्यानुमोदित प्रयत्न किया करे, या किया करता है । ३९ विवरण - सत्य के बलसे बलवान् व्यक्ति अप्राप्त राज्यैश्वर्य पानेके लिये उचित उद्यम उत्साह तथा मध्यवसाय से युक्त होकर रहे, तब ही बलका यथोचित उपयोग और विकास संभव है । " बलेन किं यच्च रिपून बाधते " वह बल किस कामका जो पापी शत्रुओंका संहार करके अपनी राज्यश्री बढाने के काम न आता हो । बल अनुपयोगसे कुण्ठित होजाता है । जैसे अयात्रा घोड़ोंके लिये बुढापा है इसी प्रकार अनुपयोग बलकी मृत्यु है 1 बलवानलब्धलाभे प्रयतेत । पाठान्तर ( आलस्य से हानि ) अलब्धलाभो नालसस्य ॥ ३८ ॥ अप्राप्त राज्यैश्वर्यको निरन्तर संग्रह करते चले जाना प्रयत्नहीन शक्तिहीन मन्द आलसीका काम नहीं है । विवरण - मनुष्य में सत्यनिष्ठा न होना ही आलस्य है । सत्यद्दीन व्यक्ति न करने योग्य काम करता तथा करने योग्य सत्यानुमोदित प्रयत्नोंमें प्रमाद करता है | अकर्तव्य अर्थात् न करने योग्य काम करना तथा कर्तव्यों अर्थात् करने योग्य कामोंसे बचे फिरना ही आलस्य है । पड़ दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता । निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ॥ विदुर कल्याणकामी मानव इस संसार में अतिनिद्रा ( स्वास्थ्यकी आवश्यकता से अधिक निद्रा ) तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घसूत्रता ये छ दोष छोड़ दे । आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महा रिपुः । आलस्य मनुष्य के ही शरीर में रहनेवाला मनुष्यका घरेलू महाशत्रु है ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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