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________________ चाणक्यसूत्राणि भसत्यका विरोध करते हुए संपूर्ण मनुष्य समाजका प्रतिनिधि बनकर भारमरक्षा करता हुभा संपूर्ण मनुष्यसमाजकी मनुष्यताका रक्षक बनजाता है । स्पष्ट शब्दों में सत्यनिष्ठ व्यक्ति जहां एक दूसरेके स्थायी हार्दिक संबंध रखनेवाले सच्चे मित्र होते हैं वहां वे संपूर्ण समाजके भी स्थायी मित्र होते हैं। (मित्रसंग्रहका लाभ ) मित्रसंग्रहणे बलं संपद्यते ॥ ३६॥ सच्चे मित्रोंका संग्रह करने या सच्चा मित्र मिलजानेसे मनुध्यको बल प्राप्त होजाता है। विवरण-- सच्चे मित्र मिलनेसे मिलनेवाला बल स्वामी, अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, कोष, सेना, तथा मित्र इन सातों या इनमें से कुछ रूपों में प्राप्त होता है, ऐसा कामन्दक नीतिकारका वचन है। अमरसिंहकी नीतिमें कर देनेवाली जनताको मिलाकर माठ प्रकारका बल कहा है। बल शरीर. सामर्थ्य का वाचक भी है । परन्तु यहांपर बल राजशक्ति से संबद्ध बलका पारिभाषिक नाम है। इससे पहले सूत्रमें सच्चे मित्रोंसे मिलानेवाले सत्यको ही मनुष्यको बलवान् बनानेवाला मित्र बताया है। इस सूत्र में उसीका स्पष्टीकरण इस प्रकार किया है कि सत्यको अपनाकर असत्यका विरोध करते हुए विपन्न होनेसे न डरना शक्तिमानोंका स्वभाव होता है। यों शक्तिमानोंकी शक्ति उनके किये हुए असत्य विरोधोंसे ही सूचित होती है। समचे मित्र भी असत्यके विरोधोंसे ही हाथ आते हैं। किसी असत्यका विरोध करने लगना ही संसारमेंसे सच्चे मित्रोंके मिलनेका उपाय बनजाता है। सत्यनिष्ठासे ही बलवान् बनाजाता है । सत्यनिष्ठासे सच्चा बल संगठित हो जाता है। (बलका उपयोग ) बलवानलन्धलाभे प्रयतते ॥ ३७ ॥ सत्य या सच्चे मित्रोंके बलसे बलवान् व्यक्ति अप्राप्त राज्य. श्वर्य पाने ( अर्थात् उसे उत्पन्न करने तथा उसे निरन्तर बढाते
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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