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________________ चन्द्रगुप्त नंद वंशका नहीं था ६०३ १ अहो राक्षसस्य नन्दवंशे निरतिशयो भक्तिगुणः । स खलु कस्मिाश्चिदपि जीवति नन्दान्वयावयवे वृषलस्य साचिव्यं ग्राहयितुं न शक्यते । (अंक ) राक्षस नन्दकुल में अत्यन्त स्नेह रखता है। वह निश्चय ही नंदवंशके किसी भी व्यक्ति के जीतेजी चन्द्रगुप्तका मंत्री नहीं बनाया जा सकता। २ राक्षसः- उत्सन्नाश्रयकातरेव कुलटा गोत्रान्तरं श्रीर्गता। (अंक ६) लक्ष्मी आश्रयहीन कुलटासी बनकर दूसरे गोत्र ( चन्द्रगुप्त के गोत्र) में चली गई । अर्थात् चन्द्रगुप्त नन्द गोत्रका नहीं था। ३ वज्रलोमा-- नन्दकुलनगकुलिशस्य मौर्य कुलप्रतिष्ठा पकस्य आर्यचाणक्यस्य । ( संक ४) अजेय नन्दकुलरूपी पर्वत को भी छिन्नभिन्न कर डालनेवाले विनाशक वज्र तथा मौर्यकुलके प्रतिष्ठापक मार्य चाणक्यका इससे भी यह सिद्ध होता है कि यह नन्द वंशका नहीं था । ४ राजा ( चन्द्रगुप्तः ) किमतः परमपि प्रियमस्ति? राक्षसेन समं मैत्री राज्ये चारोपिता वयम् । नन्दाश्चोन्मूलिताः सर्वे किं कर्तव्यमतः परम् ॥ अंक ७-१७ ) राजा ( चन्द्रगुप्त ) कहने लगा- गुरुवर चाणक्य ! इससे अधिक और क्या प्रिय हो सकता है। आपने राक्षससे मैत्री करा दी, मुझे सम्राट् बना दिया, सब नन्दों को नष्ट कर डाला। इसके पश्चात् अब करना ही क्या है ? ५ चन्द्रगुप्त की राक्षससे प्रथम भेंट के समय राक्षसका व्यवहार बताता है कि उसने तब युवक मौर्य समाट्को प्रथम वार ही देखा था। यदि चन्द्रगुप्त मगधवासी तथा नन्द वंशका होता तो राक्षपको उससे पहले से ही पूर्ण परिचित होना चाहिये था। उसे उसको देखकर आश्चर्यान्वित नहीं होना चाहिये था।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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