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________________ चाणक्यसूत्रााण राजा और अमात्योंके परस्परानुरक्त रहनेपर ही राष्ट्र में सकल संपत्तियों का वास होता है। भिन्नभिन्न विद्वानोंने मित्रके निम्न लक्षण किये हैं । तन्मित्रमापदि सुखे च समक्रियं यत् । मित्र वह है जो संपत् और विपत् दोनों में पूरा पूरा साथ दे और समान प्रतिकार करे। ___ मन्दायन्ते न खलु सुहृदामभ्युपेतार्थकृत्याः । मित्रोंके वे कर्तव्य जो एक बार अपने विपन्न मित्रकी सहायताके रूपमें स्वीकृत होजाते हैं कभी मन्द नहीं होते। ___ समानशीलव्यसनेषु सख्यम् । जिनके शील समान और जो एक विपत्तिके माखेट होते हैं, उनमें मित्रता होती है। कराविव शरीरस्य नेत्रयोरिव पक्ष्मणी । अविचार्य प्रियं कुर्यात् तन्मित्रं मित्रमुच्यते ॥ जैसे शरीरपर चोट पडनेपर हाथ शरीरकी और मांखपर माघात माने. पर पल के भाखोंकी रक्षाके लिये बिना विचारे स्वभावसे कटिबद्ध होजाती हैं, उसी प्रकार जो मित्रको विपन्न देखकर बिना भागा पीछा देखे उसकी सहायताको दौड पडता है वही मित्र है। शुचित्वं त्यागिता शौर्य सामान्यं सुखदुःखयोः। दाक्षिण्यं चानुरक्तिश्च सत्यता च सुहृद्गुणाः ॥ निष्कपटता, मित्र के लिये त्याग, मित्रके विपद्वारण के लिये शौर्य, सुखदुःख में समानता, उसके हितसाधनके लिये चातुर्य अनुराग तथा सत्यता ये मित्रके आठ गुण हैं। उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे। राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ॥
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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