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________________ मन्त्रीकी नियुक्ति हैं । सत्यनिष्ठ लोग अपनी सत्यनिष्ठाके परिणामस्वरूप किसी भी सत्यनिष्ठपर आगई हुई विपत्तिको अपने ही ऊपर आई विपत्ति मानकर उस विप. द्वरण तथा विपद्वारणमें विपन्नके स्वभावसे साथी बनजाते हैं। कृत्रिम मित्र लोग जिस विपत्ति में विपन्नको त्याग देते हैं वह विपद् वास्तवमें सत्यनिष्ठाके परिणामस्वरूप माई हुई होती है। मनुष्य की सत्यनिष्ठा आसुरीसमाजमें अनिवार्य रूपसे राजामों या शक्तिमानोंके रोषका कारण बन जाती है । आसुरी समाज तो आसुरी राज्य या अधिक शक्तिवाले लोगोंके सामने नतमस्तक होकर उसे स्वीकार किये रहता है इस लिये उससे राज्यशक्ति या बडे लोगोंके संघर्षका अवप्तर नहीं माता । परन्तु सत्यनिष्ठ व्यक्तिसे मासुरी राज्य और घमंडी लोग सहे नहीं जाते, इसीसे संघर्ष खडा होजाता है। वह प्राणोंपर खेलकर भी उस राज्य तथा भौतिक बलशालीके बलको अस्वीकार करना अपना अत्याज्य कर्तव्य माना करता है। उस समय उसका राजरोष या प्रबल व्यक्ति के रोषका पात्र बनजाना ही मित्रकी पद. चान करानेवाला होजाता है। “राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ।" उस समय, केवल समृद्धि के दिनोंवाले कृत्रिम मित्र उसे विपक्ष होने के लिये अकेला छोड देते और अपने को मित्र होनेके अयोग्य घोषित कर दते हैं। स किं सखा साधु न शास्ति योऽधिपं हितान्न यः संशणुते स किं प्रभुः । सदानुकृलेषु हि कुर्वते रति नृपष्वमात्येषु च सर्वसंपदः ॥ स्वामीके हितका अनुपदेष्टा अमात्य आदि नामोंवाला मित्र सच्चा मित्र नहीं है । अपने हितोपदेशी मित्रोंसे अपने कल्याणकी बात न सुननेवाला स्वामी खोटा स्वामी है। सच्चे मित्रों को, राजाके हितकी बात, उसके सुन. .नेको उद्यत न होनेपर भी, उससे बलपूर्वक कहदेनी चाहिये, तथा सच्चे स्वामोको अपने हितकी कटु बात भी मित्रोंसे श्रद्धापूर्वक सुननी चाहिये । तब ही राजा और उसके मित्रों अर्थात् मन्त्रियोंका ऐकमस्य रहसकता है।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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