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________________ ५६४ चाणक्यसूत्राणि दूसरा युद्ध मा खडा होता। इस आसन युद्धको क्रियात्मक रूप लेने देने में भारतका निश्चित अकल्याण होता । तब भारतकी सखण्ड साम्राज्य की कल्पना खटाई में पड जाती। इन सब दृष्टियोंसे मार्य चाणक्यने अपनी कूटनीतिसे ऐसी सष्टि रचकर प्रस्तुत की कि मगध सिंहासन के लिये युद्ध यात्रा होनेपर भी युद्ध न होने पाये और मगध पिना ही युद्ध के विजित हो जाय। इस कामके लिये उसने इधर तो नन्द सेनामें नन्दके प्रति विद्रोह तथा चन्द्रगुप्तके प्रति अनुराग पैदा कराया, मगधका सिंहासन चन्द्रगुप्त के लिये निष्कंटक कर दिया और उधर नन्दकी गुप्त हत्या करा डाली । परिस्थितिने ऐसी अनुकूल करवट बदली कि मगधकी राजधानी पाटलीपुत्रमें चन्द्रगुप्तके पहुंचने पर युद्ध के स्थानमें चन्द्रगुप्तका शत्रुपक्षकी भोरसे पुप्प. मालाओं से स्वागत हुआ। चाणक्य के कूटनैतिक प्रयोगोंने पुरुराजके मगध राज्याभिलाषी मनको राज्य मांगनेका साहस न करने देनेका स्वाभाविक वातावरण बनानेके लिये मगधकी सेना तथा राज्यके प्रधान पुरुषों के हार्थोसे चन्द्रगुप्तका राजतिलक कराकर उसे सिंहासन समर्पण करनेका अभिनय करा दिया। चन्द्रगुप्तको पाटलीपुत्रकी प्रजाकी सम्मतिसे सिंहासनारूढ होता देखकर पर्वतक मन ही मन भौंचक्का रह गया। वह चन्द्रगुप्त के भारतव्यापी प्रभाव तथा मगध सिंहासन लाभकी इस अकल्पित घटनाको देखकर उसका प्रत्यक्ष विरोध करने का साहस नहीं कर सका । इस प्रकार चाणक्यकी कूटनीति ने राज्यलाभोत्तरकालीन विग्रहको टाल तो दिया परन्तु पर्वतकको ईर्ष्या उस समय कुछ न कर सकने पर भी प्रतिहिंसाका रूप धारण कर गई। इस लिये उसने सिकन्दरके भूतपूर्व सेनापति, इस समयके सीरियाके राजा सेल्यूकसके पास, जिसके मनकी भारत को लूटने की महत्वाकांक्षा निर्मूल नहीं हुई थी, दूतके द्वारा भारत पर आक्रमण करनेका निमंत्रण भेज दिया। पर्वतकका यह देशद्रोही काम चाणक्य जैसे सतर्क बुद्धिमानसे गुप्त नहीं रह
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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