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________________ प्रसंगोचित आलोचना शीत युद्ध कहा जाने लगा है चल रहा था। परन्तु चाणक्यकी असाधारण प्रभावशालिता तथा सूक्ष्म नीतिकुशलता के कारण इन दोनों विरोधियोंकी सम्मिलित शक्ति मगधके देशद्रोही राजा नन्द के विरुद्व युद्ध में उपयुक्त होनेके लिये प्रस्तुत हो गई । '५६३ चन्द्रगुप्तको सुदूर पश्चिमोत्तर भारत से आकर मगध विजय पानी थी । परन्तु पर्वतकका राज्य मगध तथा पश्चिमोत्तर भारतके मध्य में पडता था । उस समय दो महत्वपूर्ण राष्ट्रीय प्रश्न उपस्थित हुए या तो देशद्रोहीको मिथ्या आश्वासन देकर उससे सहायता लेनेके लिये उसे ठसा जाय या उसका दमन किया जाय। इसके बिना यह मध्यका मार्ग पार करना असंभव था । अन्तमें उसे मगधविजय सायक बननेके लिये मगसिंहा. सन देनेका मिथ्या आश्वासन देकर धोका देकर ठगना ही राष्ट्रीय कर्तव्य के अनुकूल स्वीकार करना पडा । तदनुसार अब मगध-विजय के लिये सम्मिलित समस्यात्रा प्रारंभ हुई । उस समर-यात्रामें सम्राट् बनने के पर्वतक तथा चाणक्यानुमोदिन चन्द्रगुप्त दो परस्पर विरोधी प्रतीक्षक सम्मिलित थे । इसलिये चाणक्यको मगधराजसे युद्ध उनसे भी पहले मगध विजय कर चुकने पर अनिवार्य रूप से उपस्थित होनेवाली राज्याधिकार के लिये कलहायमान स्थितिकी चिन्ताने आ घेरा । यह स्थल चाणक्यकी राजनैतिक प्रतिभाकी परीक्षाका कठिन अवसर था । - चाणक्य देख रहा था कि मगध के युद्ध में विजय पाते ही पर्वतक तुरन्त मगधका वह सिंहासन लेना चाहेगा जिसको उसे देने का आश्वासन दिया तो गया है, परन्तु वह देशद्रोही होनेके कारण किसी भी रूप में उसका अधिकारी नहीं है । चाणक्यने निर्णय कर डाला कि यद्यपि हमने उससे मगध-सिंहासन देने की प्रतिज्ञा कर ली है परन्तु राष्ट्रीय कर्तव्यबुद्धि के अनुसार हमें वह उसे किसी भी स्थिति में नहीं देना है । यह स्थिति ऐसी जटिल थी कि युद्ध समाप्त होते ही राजसिंहासनपर अधिकार सम्बन्धर्मे
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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