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________________ मन्त्रोत्पादन सार्वजनिक कार्यों में अकेले अकेले मनुष्योंकी कोई उपयोगिता नहीं होती। अनुभवी मन्त्रियोंकी व्यवहारकुशल सम्मतियोंके बिना अकेला राजा राष्ट्र में अनर्थ खडा कर देता है । राज्य राजाओंकी पारिवारिक समस्या नहीं है। इसमें उन्हें राष्ट्र के व्यवहारकुशल दूरदर्शी विशिष्ट पुरुषों की सहायता लेनी ही चाहिये । इसीलिये कौटलीयमें कहा है सहायसाध्यं राजत्वं चक्रमेकं न वर्तते । कुर्वीत सचिवांस्तस्मात्तेषां च शृणुयान्मतम् ॥ राजधर्म योग्य सहायकोंके साहाय्यसे ही पाला जाता है । इसलिये राजा भाचार्यों तथा मन्त्रियों की बात ध्यानसे सुने और तदनुसार आचरण करके अपने राजदण्डधारणको सार्थक करे। पाठान्तर-नैकं चक्रं परिभ्रमति । __ सहायः समदुःखसुखः ॥१८॥ सुख-दुःख दोनों में अभिन्नहृदय साथी होकर रहनेवाला मंत्री आदि सहायक कहाता है । विवरण- सुख-दुःखका एकसा अनुभविता और दुःखका एकसा प्रतिकर्ता ही सहायक माना जाता है । सुख-दुःखमें तटस्थ रहनेवाला सहायक या हितैषी नहीं माना जासकता। सहायक लोग समशक्ति, दीनशक्ति तथा प्रबलशक्ति तीन प्रकारके होसकते हैं । यह मेद उनकी परिस्थितिपर निर्भर करता है। ये तीनों प्रकार के सहायक समानभावसे अपनाने योग्य होते हैं। पाठान्तर-- सहायः समो दुःखसुखयोः । (मन्त्रोत्पादन) मानी प्रतिमानिनमात्मनि द्वितीयं मन्त्रमुत्पादयेत् ॥१९॥ समुन्नतचेता स्वाभिमानी राजा प्रबन्धसंबन्धी जटिल समस्याओंके उपस्थित होनेपर अपने ही भीतर दूसरे प्रतिमानी विचारात्मक मन्त्रको उत्पन्न कर लिया करे और निगूढ कार्योंके विषयमें सबसे पहले उस मन्त्रके सहारेसे सोचा करे ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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