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________________ चाणक्यसूत्राणि इसमें सहायकों की अनिवार्य मावश्यकता है। राज्यकी समस्यायें समस्त राष्ट्रकी समस्यायें होती हैं । इसलिये राजा या राज्याधिकारी लोग अपने राज्यमें से व्यवहारकुशल चरित्रवान् सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमानोंका संग्रह करके, उनके अनुभवोंसे लाभ उठाकर, अपने राष्ट्रको विपत्तियों से भी बचायें और संपन भी करें। महामन्त्री, सेनापति, राज्यश्रेष्ठी, प्रधान न्यायाधीश, राज्यके चार सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति, सब प्रकारकी सेनाओं के एक एक मुखिया, पुरोहित, अमात्य भादि राजाके सहायक कहाते हैं । समाजके ललामभूत इन योग्य अधिकारियोंके कारण भारतके एकछत्र कहलानेवाले राज्य भी सदासे प्रजातंत्र रहते आरहे हैं । वयस्कमताधिकार नामवाला योरोपसे भारतमें उधार लाया हुमा प्रजातंत्र इसलिये प्रजातंत्र नहीं है कि वयस्क होजानेमानसे किसीका मन इतना संस्कृत नहीं हो जाता कि उसके मुखसे समस्त प्रजाकी सदिच्छायें व्यक्त होने लगें । राज्याधिकारपर प्रजाके तपस्वी व्यवहारकुशल विद्वानोंका प्रभावशाली होकर रहना ही प्रजातंत्र कहला सकता है। प्रजाकी सामूहिक सदिच्छाओंका राज्यतन्त्रपर प्रभावशाली (हावी) रहना ही तो प्रजातंत्र की परिभाषा है । प्रजाके निष्कर्षभूत योग्य सदाचारी व्यवहारकुशल विद्वानों के मुखसे प्रजाकी सदिच्छायें न केवल व्यक्त अपितु राज्यतंत्रपर प्रभाव रखनेवाली होकर उस एकतंत्र दीखनेवाले राज्यको भी प्रजातंत्र ही बनाये रखती हैं । राजाको व्यवहारकुशल सदा. चारी विद्वानोंको सदा अपना सहयोगी बनाये रखना चाहिये । राष्ट्रीय कर्त. ज्योंके विषय में इन सब लोगोंका ऐकमत्य होजाना ही 'मन्त्र', कहाता है। नैकं चक्रं परिभ्रमयति ॥१७॥ जैसे रथका अकेला चक्र रथको नहीं चला पाता इसी प्रकार राजा तथा मन्त्रिपरिषद्पी दो चक्रोंसे हीन एकतन्त्र राज्य रथ अकार्यकारी हो जाता है। विवरण- राज्य में एकतन्त्रताके सुपने देखनेवाला राजा राज्यसंस्थाको मव्यवस्थित करके राष्ट्र में अराजकता फैलानेवाला बनजाता है । सहायसाध्य
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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