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________________ लोकाचारका आधार (लोकाचारका आधार ) शास्त्रप्रधाना लोकवृत्तिः ॥ ४६९॥ लोकाचार शास्त्रके आधारपर ही प्रचलित हुए हैं। विवरण-लोगोंको चाहिये कि वे स्वेच्छाचार-मूलक प्रवृत्तियों को हानिकारक समझकर उनसे बचकर रहें । शास्त्रविधिके अनुपार कार्याकार्य. विवेक करके कार्यों में प्रवृत्त हों। शास्त्र तीन प्रकारका है पहला शास्त्र- ऋगादिशास्त्र । सन्तों के नश्वर देशका अन्त होजाने पर भी उनके अनुभवों से लाभ उठाते रहने के लिये शास्त्रोंकी मष्टि हुई है। भ्रम, प्रमाद, विप्रलिप्सा इन तीन दोषों से हीन होकर लिखी गई पुस्तके शास्त्रश्रेणी में आती हैं। दूसरा शास्त्र- 'तद्विद्वद्भिः परीक्षेत' में वर्णित है। व्यवहारपारं. गत ज्ञानवृद्धोंका जीवित अनुभव भी शास्त्र कहता है ।। तीसरा शास्त्र- पलं हि शास्त्रमिन्द्रिय जयः' में वर्णित हुअा है । अपनी इन्द्रियोंकी भोगाभिलाषाओं या कण्डतियोंका मनुष्यपर माधिपत्य में होकर उन मनपर मनुष्य के विवेकका ही पूरा पूरा भाधिपत्य हो और उसकी इन्द्रियशक्तियों का जीवन-यात्रामें केवल सदुपयोग ही सदुपयोग हो, यह भी एक महान् जीवित शास्त्र है । मानवकी प्रवृत्ति इन तीनों प्रकार के शास्त्रोके पूर्ण नियन्त्रणमें हो इसी में उसका कल्याण है। बोधायनके शमोंमे शिष्ट वे हैं जो वेदह रागद्वेषादि-परित्यागी, ईर्ष्या, अहंकार, कपट, लोभ, तृष्णा, शंका, क्रोधसे हीन हैं । जो दस दिन मात्र अनसे सन्तुष्ट है, ईश्वर-भान, पितृमातृ-भक्ति करते हैं। शान्त प्रकृति हैं । स्वतंत्रता- प्रिय हैं । असूया कटुपनसे अतीत स्पष्टभाषी, कृतज्ञ, धार्मिक तथा स्थिर हैं वे शिष्ट कहाते हैं। शिष्ट वही है जिसके मानसिक, वाचिक तथा कायिक आचरण माठों पहर व्यर्थताके कलंक से मुक्त रहते हैं। जिसका एक भी माचरण न्यर्थताके लपेट में आ जाता है वह कदापि शिष्ट नहीं है। पाठान्तर-शास्त्रप्रघाना लोकप्रवृत्तिः । लोककी प्रवृति शास्त्रमधान होनी चाहिये।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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