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________________ 410 चाणक्यसूत्राणि सूत्र कहना चाहता है कि अयोग्य राजाको अकारण रुष्ट न करके ससे अपनी तात्कालिक वाक्चातुरीसे तृप्त करना ही बुद्धिमत्ता है। सारांश यह है कि जब कि राजाका हमसे स्वतंत्र कोई अस्तित्व ही नहीं है जब कि वह राष्ट्र के हाथोंका यन्त्रमात्र है, तब राजाको सत्य सुनाने के संकटमें न पडकर उसे अपने राष्ट्रसेवक कर्तव्यक्षेत्र में ही सुनाने के लिये स्थगित रखना चाहिये / पाठान्तर- श्रुतिसुखाः कोकिलालापाः / जब कि कोकिलके आलापतक सुखकर होते हैं तब मानवके मधुरा. लापों के सम्बद होने की तो बात ही क्या ? ( कुकी का पश्चात्ताप ( अधिक सूत्र ) तप्यते दुष्करकारी यत्नवान् नाम / कुकर्ममें यत्न करनेवाला व्यक्ति सन्ताप पाया करता है। विवरण- दुराचारी, क्रूरकर्मा, कठोर स्वभाववाला कापुरूष अति उद्योगी परमनिपुण होनेपर भी अपने किये गर्हित कर्मके निकृष्ट फलसे स्वयमेव भीतर ही भीतर पश्चात्तापाग्निमें दग्ध होकर अनुतह मोर विषादी होता रहता है। जैसे बालकपनमें विद्याध्ययनसे मन चुगनेवाले यौवनमें अपनी भूल पर पछताते हैं इसी प्रकार दुष्कर्माका अन्तरात्मा उसके गहित माचरणके लिये उसे सदा कोसता मोर नोचनोचकर खाया करता है / इसके विपरीत साधुकारी स्वयं भी मुखी रहता और दूसरों को भी सुख पहुंचाता रहता है। ( सापुरुषका स्वभाव ) स्वधर्महेतुः सत्पुरुषः // 447 // सत्पुरुषत्वका हेतु स्वधर्म होता है / स्वधर्मपालनसे ही सत्पु. रुष बनते हैं। स्वधर्मपालन ( स्वकर्तव्यपालन सत्पुरुषोंको ढालनेवाला सांचा है।। पाठान्तर-स्वधर्महेतुभूतः सत्पुरुषविशेषः / सत्पुरुष ही स्वधर्मपालन कर सकता है /
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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