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________________ मधुर भाषणका प्रभाव 409 औषधप्रयोगको आवश्यकता रोगी स्थानपर ही होती है / रोगके मूलको नष्ट न करके रोगके उपद्रवों के साथ झगडने से रोग नहीं हटता। इस दृष्टिसे अयोग्य राजाके व्यक्तित्व पर क्लीबोचित क्रोध दिखाना राष्ट्रसेवा न होकर राष्ट्रद्रोह है / जबतक राजा राष्ट्रकी सम्मतिसे राजसिंहासनपर बैठा हुआ है, जबतक उसके व्यक्तित्वपर किसी भी प्रकारका माक्रमण करना राष्ट्र में अशान्ति उत्पन्न करनेवाला होजाता है। ऐसी परिस्थितिमें राष्ट. सेवाका मर्म समझनेवालोंका यही कर्तव्य होजाता है कि कुशासक राजाके व्यक्तित्वपर माक्रमण न करके धैर्य के साथ राष्टको उस मानसिक व्याधिको चिकित्सा करें जिसने अयोग्य व्यक्तिको राजसिंहासनपर बैठा रक्खा हो / पाठान्तर- राजद्विष्टं न वक्तव्यम् / (मधुर भाषणका प्रभाव ) श्रुतिसुखाकोकिलालापात्तुष्यन्ति // 446 // जैसे मनुष्य श्रवणसुख कोकिलालापोंसे तृप्ति अनुभव करते हैं इसी प्रकार विज्ञ लोग राजाओं या राज्याधिकारी बड़े बने हुए लोगोंको श्रुतिमधुर सत्यानुमोदित वाक्यपरिपाटीसे सन्तुष्ट रक्खें। और अपने कामाम व्याघात उत्पन्न न होने दें। विवरण- अयोग्य राजाके साथ वार्तालाप करने की आवश्यकता पड़ने पर उसकी अयोग्यतापर कटाक्ष करने के लिये उसके कानोंमें चुभनेवाली बात कहकर उसे क्रुद्ध कर देना हानिकारक है। इस सूत्रमें कोकिलके कण्ठका उदाहरण इसलिये दिया है कि जब कि मनुष्य के कण्ठमें श्रोताके कानोंको पीडा न पहुंचाने का सामर्थ्य है, तब उसका दुरुपयोग क्यों किया जाय ? कान सदा ही अनुकूलताके प्यासे होते हैं इसलिये वचनको कट हो जाने देना वचनकलाकी अनभिज्ञता है। ज्ञानीके कान सदा सत्यसे प्यार करते हैं / अज्ञानीके कान सदा सत्यके शत्रु होते हैं। योग्य राजाको सत्यवचन सुनाकर तृप्त किया जाता है परन्तु अयोग्य राजा सत्य से रुष्ट होजाता है।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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