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________________ नीत्र प्रभुका स्वभाव ३९९ धनीसम्पन्न लोग सत्यकी सेवा करने की दृष्टि से निर्धनोंका उपकार करें यह मानवसमाजका सामाजिक नियम है और यह गुणी निर्धन लोगोंकी एक सदाशा भी है । कारण यह है कि मनुष्यको समाजके सहयोगसे ही धनोपार्जनका अवसर और साधन प्राप्त होते हैं । धनियोंको समाजकी मूक स्वीकृति और सहयोगसे ही धनी बनने के सुअवसर मिलते हैं। धनियोंको थपने समाजके इस मूक सहयोगका उचित मूल्य मांकना चाहिये। समाजका यह ऋण जब जिस रूपमें शीघ्रसे शीघ्र चुकाया जा सके चुकाने के लिये सहर्ष प्रस्तत रहना चाहिय और इसमें ऋणमोक्ष अपनेको सौभाग्यशाली भी मानना चाहिये। धनियों के पास जो अर्थी लोग आते हैं वे वेही लोग होते हैं जिन्होंने अपने मुक सहयोगसे उन्हें धनी बनने के अवसर दिये थे । आज परिस्थिति और आवश्यकताने विवश करके उन्हें अर्थी बनाकर भेजा है। ऐसे अर्थियोंकी अवज्ञा करना अपनी ही और अपने ही सौभाग्यकी, अपने ही सद्गुणोंकी अवज्ञा है । यह अवज्ञा आत्मविनाशका ही पूर्वाभास है। इसके अतिरिक्त अर्थी बनकर आनेवालों में अधिकारी अनधिकारी सब ही प्रकारके लोग आते हैं । गृहस्थ मनुष्यपर अपने बच्चोंका ही नहीं इस समस्त संसारके सत्याथ पालनका भार है जिसे उसे सामानुसार पूरा करना है । यदि ऐसे प्रसंगपर अवज्ञा करने के स्वभावसे भूलसे किसी मधिकारीकी अवज्ञा होगी तो अवज्ञाकर्ताका सत्यच्युतिरूपी अधःपतन प्रमाणित हो जायगा। ( नीच प्रभुका स्वभाव ) सुदुष्करं कर्म कारयित्वा कर्तारमवमन्यते नीचः ॥४३८॥ नीच व्यक्ति सुकटोर कर्म कराकर उसके न होने या अधूरा रह जानेपर या होजानेपर भी कर्ताको सफलताका यश न देनेकी भावनासे अपमानित किया करता है। विवरण-- नीच व्यक्ति काम भी कटोर करा लेता है और कर्ताको उसके कर्तृत्वका यश न पाने देने के लिये उसका अपमान भी करता है।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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