SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 423
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चाणक्यसूत्राणि (दुर्जनोंका साझा हानिकारक ) न दुर्जनेषु भागधेयः कर्तव्यः ॥ ४३३ ।। मनुष्य हीनस्वभाववाले दुष्ट, क्रूर दुर्जनोंके साझेमें कोई काम न करे। विवरण- दुर्जनों को किसी भी काम में साझी न बनाये । दुर्जन लोग स्वयं तो नष्ट हो ही चुके होते हैं और दूसरों को भी नष्ट कर डालते हैं। ये बडे कृतघ्न होते हैं । जैसे दुष्ट वायुमें रहनेसे अस्वास्थ्य और रोग होता है इसी प्रकार दुर्जनसंयोगसे मनुष्य का दुःखी होना अनिवार्य होता है । ' दुर्जनः परिहर्तव्यः सद्भावै मण्डितोऽपि सन् ।' सद्भावोंसे मण्डित दीखनेपर भी दुर्जनसे दूर रहना चाहिये। ये लोग "विषकुम्भं पयोमुखम्" मुखमात्रमें ऊपर ही ऊपर दूध भरे विषसे भरपूर घडेके समान जिह्वा मात्रमें मीठे और हृदयमें अत्यन्त कडके होते हैं। पाठान्तर- न दुर्जनेषु भागधेयं कर्तव्यम् । (सौभाग्यशाली नीचोंसे संबन्ध अकर्तव्य ) न कृतार्थेषु नीचेषु सम्बन्धः ।।४३४॥ सौभाग्यवान् नीचेंसेि सम्बन्ध मत करो। विवरण ----- सौभाग्यशाली नीचोंके सौभाग्यसे लाभान्वित होने के लोभमें उनसे घनिष्ठ सम्बन्ध मत स्थापित करो। नीचोंकी कृतार्थता, उनका सौभाग्य, उनकी मानप्रतिष्ठा, सबकी सब नीचताकी ही सफलतायें हैं। नीचका सौभाग्य अकाल जलदोदयके समान न जाने कब, कहां, किसका प्रलय बुला डाले । नीचोंकी सफलताओं और सौभाग्यलक्ष्मियों में सम्मिलित होजाना नीचताको ही अपनाना होता है । मनुष्यकी नीचताको अपनाने से बडी और कोई दुर्गति नहीं हो सकती। यह सब समझकर मनुष्यको नीच
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy