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________________ सत्यके पीछे चलो ही मनुष्य के सम्मुख उपस्थित करके स्वतन्त्र ... ... रीति से सोचकर समाजकल्याणकारी कर्तव्य करने का उपदेश दिया है। सूत्रकी वचन परि. पाटीको गम्भीरता समाजके साथ अंधा बनकर चलनेको मना कर रही है और समाजकल्याणको अपनाने का उपदेश दे रही है। सूत्रकार स्वयं अपने मुखसे 'सारं माहाजनः संग्रहः पीडयति ।' इस सूत्रमें बहुमतीय निर्णयों का विरोध कर चुके हैं। ___ गतानुगतिका लोको न लोकः पारमार्थिकः । ' यह किंवदन्ती भी बहुमतको अविश्वास्य घोषित कर रही है । साधारण लोग विचार कर काम करनेवाले या सन्मार्ग छांटकर फिर उसपर चलने. वाले न होकर भेडा-चाल होते हैं। बहुमत कभी भी विचारशी लोंका नहीं होता । बहुमत चाहे सारा समाज ही क्यों न हो, उनका भी अन्धानुगमन न करके चक्षुष्मान होकर सत्यका अनुगमन करने से ही सम्पूर्ण समाजका कल्याण होता है। जिसमें समग्र मानवसमाजका कल्याण है वहीं चाणक्य जैसे विचारकको कहना चाहिय और वही उसके सूत्रका अर्थ भी होना चाहिये। कभी कभी बहुमतका विरोध करना देश के विशारशील लोगोंका स्पष्ट कर्तव्य होता है। ऐसे प्रसंग बहुधा माते है जब समाजके अनुभवी विद्वानों को अपने देशके मूढ बहुमत का विरोध करना पडता है । जब बहुजन विरोधमें एकका मत सकल जनहितकारी होता है उस समय विज्ञ लोगों को अज्ञानियोंके बहुमतका अनादर करना ही पड़ता है। इसलिये इस सूत्रका यह यथाश्रत अर्थ अनुभव विपरीत होनेसे उपादेय नहीं हो सकता कि बहजनविरोध हो तो एक किसीका अनुसरण न करके बहुमतका अनुसरण करन। चाहिये । यह अर्थ मानवकी सत्यनिष्ठा ( या स्वतन्त्रता ) पर चोट करनेवाला होने से मान्य नहीं है।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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