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________________ दीरद्रताके कष्ट ३८९ उपाय करे और उन सत्प्रयत्नों के परिणामस्वरूप यथाप्राप्त जीवनसाधनको पर्याप्त मानकर उन्हींसे सहर्ष जीवनयात्रा करे, यही दरिद्रता मिटानेका मानवाधीन एकमात्र संभव उपाय है। समाजकल्याणमें मास्मकल्याणबुद्धि रूपी सत्यको अपनाये रहकर धना. भावमें भी सत्याभाव न होजाने देना मानवकी दुःखातीत स्थिति या दुःख में भी सुखी रह सकनेका निराला मार्ग है । फलाकांक्षाको मुख्यता न देकर कर्तव्यपालनको मुख्यता देनेका आत्मसन्तोष लेते रहना ही दारिद्रय भीतिको परास्त करनेकी रामबाण चिकित्सा है। यदि दरिद्र लोग धना. भावसे सत्याभाव न होने देने की दृढता रखें तो वे अपने दरिद्र माकिंचन जीवनमें भी देवदुर्लभ स्वाभिमान भोग सकते हैं। धनगर्वित धनोपासक लोग चाहे जितने धनी होने पर भी धनाभावका रोना रोया ही करते हैं। ऐसे लोगोंके पास धनकी न्यूनता न रहनेपर भी इनकी कोटिपति बनने की इच्छा ही इनकी दरिद्रता है। इस प्रकार के कृपण लोग भी दरिद्र कोटिमें गिने जाते हैं । कौडीका कंगाल जितना कंगाल है करोडोंका कंगाल भी उतना ही कंगाल है । कंगलापन या दरिद्रता पर स्वापहरण करनेवाली उस मानसिक स्थिति का ही दूसरा नाम है जो सदा अपने को अमावग्रस्त सम. झती और विषयक्षुधाकी ज्वालासे सदा ही झुलसती रहती है। अधोधः पश्यतः कस्य महिमा नोपजायते । उपर्युपरि पश्यन्तः सर्व एव दरिद्रति ॥ प्रत्येक मनुष्य अपने से नीची आर्थिक स्थितिवालोंकी तुलनासे श्रीमान् कहा जाता है । इसीके साथ यदि मनुष्य अपने से अधिक श्रीमानोंपर दृष्टि डाले तो प्रत्येक मनुष्य निर्धन कहा जा सकता है। धनी और निर्धनका कोई भी ऐसा मापदण्ड नहीं है जो निश्चितरूपमें किसीपर लागू होसके। यह मनुष्य की मानसिक स्थितिपर निर्भर करता है कि वह अपने धर्मानुकूल उपार्जनसे सन्तुष्ट होता या नहीं ? जो सन्तुष्ट है वह धनी है, जो सन्तुष्ट
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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