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________________ चाणक्यसूत्राणि विवरण - अपने प्रत्येक सदस्यको सम्पन्न बनाये रखना तथा विलास, व्यसन, दुराचार से मुक्त रखना समाजका उत्तरदायित्व है | समाजव्यवस्था ऐसी होनी चाहिये कि समाजका प्रत्येक सदस्य जीवनकी निर्दोष सुखसुविधा पाता रहे। समाजकी विचारधारा ऐसी होनी चाहिये कि समाजका प्रत्येक सदस्य समाजके सार्वजनिक कल्याणको अपना कल्याण समझकर समाजहितको अविरोधी प्रवृत्ति रखनेवाला हो । परन्तु यह कितनी दुःखद स्थिति है कि व्यक्तिगत धनाध्यक्ष अर्थात् अमीर बननेकी संकीर्ण दृष्टि समा. जसे सामाजिक विचारधाराको छीन लेती है । ' अमोरी ' नामक रोग हो समाजकी दरिद्रताका उत्पादक है । उसके परिणामस्वरूप समाजमै भनेतिकता, स्वार्थान्धता, विलासिता, व्यसनासक्ति, दुराचार के कारण दरिद्रता नामको व्याधि उत्पन्न होजाती है । ३८८ जिस समाज के सत्यनिष्ठ सीधे साधे अनुत्कोचजीवी, अनपहारक अमायावी, निष्कपट लोग दरिद्वता के कारण जीवनयात्राकी समस्या के समा धान में असमर्थ हो रहे हों समझलो कि वह समाज अपने उन भद्र पुरुषोंसे शत्रुता करके अनैतिक, स्वार्थी, विलासी, व्यसनासक्त, दुराचारी बनकर उनसे धन ऐंठकर या उन्हें सदुपायोंसे धनसंग्रह न करने देकर उन्हें दरि द्वतासे पीडित कर रहा है । राष्ट्रकी सच्ची सेवा करनेवाली राज्यसंस्थाका निर्माण करनेवाले आदर्श राष्ट्रका यह उत्तरदायित्व है कि वह जनताको दरिद्रतारूपी व्याधि से मुक्त, परिवारपालनकी भोजनाच्छादनादि सामग्रियों की ओरसे निश्चिन्त बनाकर रखता हुआ समाजसेवाकी प्रवृत्ति रखनेवाले विद्वान् विवेकी लोगों के कर्मोत्ल्लाहसे अपने समाजको शक्तिमान् बनाये रखें। जहांकी राज्यव्यवस्था में उदरम्भरि आत्मम्भरि संकीर्णचेता लोगोंकी भरमार होती है वहांकी राज्यशक्ति जनता के धन तथा प्राणोंके निर्मम हत्यारे दस्युओं, लुटेरों के हाथों में फंसे बिना नहीं रह सकती । दरिद्रता मिटानेका एकमात्र उपाय क्षुद्रव्यक्तिगत स्वार्थभावनाहीन, अन्यसनासक्त, अनलस, उत्साहसम्पन्न रहकर कर्तव्यनिष्ठाको अपनाये रहना है । मनुष्य जीवनयात्रा के लिये वैध
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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