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________________ देवोंकी कृपा बरसानेवाला तत्व समस्त व्यवस्थापर प्रभाव पडना अनिवार्य है । मनुष्यों में से सार्वजनिक कल्याणबुद्धि के अन्तर्द्दित होजानेपर मनुष्यों की दुर्भावनायें ध्वनिक्षेपक यन्त्रों से प्रसारित ध्वनियोंके समान इस समस्त विश्व तथा इसकी समस्त शक्तियों पर अपना दुष्प्रभाव डाले बिना नहीं मानतीं और वसुन्धराके प्राकृतिक वर्षा सुसिंचित होनेपर भी उनका फल जनताकी रक्षाके उपयोग में न आकर समाजकी शान्तिके शत्रु आसुरी शक्तिके अधिकार में पहुंचकर मनुष्यसमाजमें ऐसा ही हाहाकार मचवा देता है जैसा कि अतिवृष्टि आदिले होता है । यही इस सूत्रका महत्वपूर्ण अभिप्राय है । ३८३ अथवा- कुछ लोग इस सूत्र का सत्यानुष्ठानसे जलवृष्टि होती है यह अर्थ करते हैं । यही विचार चरकाचार्यने निम्न शब्दोंमें प्रकट किया है । विमानस्थान ३, अध्याय २०, २१ वाक्यसमूह अथ खलु भगवन् कुतो मूलमेषां वाय्वादीनां वैगुण्यमुत्पद्यते ? येनोपपन्ना जनपदमुद्धवंसयन्तीति ॥ २० ॥ Mon तमुवाच भगवानात्रेयः 1 सर्वेषामप्यग्निवेश ! वाय्वादीनां यद्वैगुण्यमुत्पद्यते तस्य मूलमधर्मः तन्मूलं वाऽसत्कर्म पूर्वकृतम् । तयोर्योनिः प्रज्ञापराध एव । तद्यथायदा देशनगरनिगम - जनपदप्रधाना धर्ममुत्क्रम्याधर्मेण प्रजां वर्तयन्ति तदाश्रितोपाश्रिताः पौरजनपदा व्यवहारोपजीविनश्च तमधर्ममभिवर्धयन्ति । ततः सोऽधर्मः प्रसमं धर्ममन्तर्धसे । तेषां तथान्तर्हितधर्मणामधर्मप्रधानानामपक्रान्तदेवतानामृतवो व्यापद्यन्ते । 3 तेन नापो यथाकालं देवो वर्षति, नवा वर्षति, विकृतं वा वर्षति, वाता न सम्यगभिवान्ति, क्षिति व्यपद्यते सलिलान्युपशुष्यन्ति, भोषधयः स्वभावं प्ररिहायापद्यन्ते विकृतिम् । तत उद्ध्वंसन्ते जनपदाः स्पश्र्याभ्यवहार्यदोषात् ॥ २१ ॥ भगवन्, कृपया बताइये कि वायु, वृष्टि आदि क्यों ऐसे विगुण होजाते हैं कि देशका ध्वंस कर डालते है ?
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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