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________________ ३३४ चाणक्यसूत्राणि चित्तम्फूर्ति, आयु, कलाकौशल तथा धनधान्यकी वृद्धि होती है। कूपों नदियों तथा वृष्टियों के जलोंसे उर्वर व्रीहिसम्पन्न निरुपद्रव देश ही निवास के लिये स्वीकृत होने चाहिये । देश नदीमातृक, देवमातृक तथा कूपमातृक मेदसे तीन प्रकारके होते हैं। इसीप्रकार जांगल, अनूप तथा साधारण भेदसे फिर तीन प्रकारके माने जाते हैं । जीविकारहित देश में रहना निरर्थक है। धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पंचमः । पंच यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संस्थितिम् ॥ समयपर लोककल्याणार्थ धनका सदुपयोग करनेवाला धनी, कर्तव्यनिर्देशक वेदवेदांगतत्वज्ञ विद्वान् , उपद्रव रोकनेवाला राजा, प्रकृतिमाताका अकृत्रिम सौंदर्य दिखाकर विधाताका ध्यान दिलानेवाली नदी तथा रोंगोसे त्राण करनेवाला वैद्य ये पांच जहां न हों वहां न ठहरे। ( सच्चा देश ) साधुजनबहुलो देशः ॥ ३७० ॥ बहुसंख्यक सत्यनिष्ठ साधुओंका वासस्थान ही देश कहाता है। विवरण--- जिप्स सौभाग्यशाली देशमें असाधुलोग साधुओं के प्रभावसे शासित रहते हैं वही सच्चा देश है । साधुलोगोंका सामूहिक देशप्रेम ही देशके निवासियोंको एकराष्ट्रका रूप देदेता है । यद्यपि मनुष्यसमाजमें साधुओंकी संख्या अधिक है, यद्यपि निरुपद्रव शान्तिप्रिय रहना मनुष्यका स्वभाव है । यद्यपि आक्रामकोका भाखेट बन जाना मनुष्य के स्वभावके विरुद्ध है यद्यपि प्रत्येक मनुष्य के हृदयमें माक्रामकका आखेट बननेसे बचने की भावना स्वभावसे विद्यमान है परन्तु यह भावना जब कभी बालस्य या मनवधानताका रूप लेलेती है तब ही समाजकी शान्तिपर आक्रमण करनेवाले कुछ इनेगिने उपद्रवी लोग उस जडताका अनुचित लाभ उठाकर समा. जकी शान्तिपर माक्रमण करबैठते हैं : समाजपर उपद्रवियोंके भाक्रमणका
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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