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________________ निरुपद्रव देशमें रहो ३३३ उपद्रवियों के विरोधके लिये आगे भायें, उनपर अपमा शासन स्थापित करें तथा यो जीवनको शान्तिमय बनाये रखने का मानवीय कर्तव्य पूरा करके दिखायें । शान्तिका दर्शन करना तब ही संभव है जब मनुष्य अशान्तिके विरुद्ध खड्ग उठाये तथा प्रत्येक क्षण उसे परास्त करने के लिये निरन्तर संग्रामशील रहे। उपद्रवदमन प्रत्येक शान्त नागरिकका सबसे पहला कर्तव्य है । उपद्रवदमन ही राजमत्ता है। उपद्रवदमन न करसकनेवालेको नागरिकताका अधिकार प्राप्त नहीं होता। असावधान घरों में लूटनेवालों को प्रवेशाधिकार रहता है । अपनी मोरसे ऐसा कोई काम न करना कि लूटनेवालेको प्रवेशाधिकार मिलसके यही 'सावधानता' है। मसावधान घरों में संयोगवश लूटनेवालोंका न माना निरुपद्रव स्थिति नहीं है। निरुपद्रव देशमें रहने का सच्चा अभिप्राय तो यही है कि मनुष्य अपने बुद्धि कौशल तथा भुजबल से अपने देशसे उप. द्रवोंकी संभावनाओं तक को नष्ट करडाले । मानवधर्म तो यही है मनुव्यको यदृच्छासे जब जहां जितने समय रहना पडे इतने समयके लिये उस देशको ( अर्थात् अपने निवासस्थानको ) निरुपद्रव रखने के सम्बन्ध में पूरी सावधानता बरतें तथा कतन्य करे । उपद्वहीनता नैष्कावलम्बियोंका धर्म नहीं है । उपद्रवी के साथ संग्राम छेडे रहने का ही दूसरा नाम उपद्रवहीनता है । उपद्रवोंका सक्रिय सफल विरोध ही निरुपद्रव स्थिति है। उपद्रवोंकी तात्कालिक अनुपस्थितिको उपद्रवहीनता समझनेकी भ्रान्ति करके असावधान होकर रहना तो उपद्रवीका आखेट बने रहना होता है । देशको अपने बुद्धि कौशल तथा भुजबलसे क्षोभोत्पादक उत्पात, क्लेश, पीडा, अनुत्पत्ति तथा ग्याधियोंसे रहित बनाकर उसमें गौरवके साथ वास करना मनुष्यका कम्य है । मानसिक शांति तथा जीविकाकी सुगमता ही निरुपद्रवता है। विद्या, वित्त, शिल्प, वाणिज्य, कृषि, शिक्षा, शान्ति मादिक सुप्रबन्धवाला देश ही निवासयोग्य होता है । निरुपद्रव स्थानमें बसने से स्वास्थ्य,
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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