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________________ ३२४ चाणक्यसूत्राणि कम्यको न त्यागे । यदि मनुष्य किसी भी अवस्थामें मातृसेवाका कर्तग्य न त्यागे तो उसके शेष सब कर्तव्य स्वयमेव पालित होजाते हैं। यह मनो. वैज्ञानिक सिद्धान्त है कि यदि मनुष्य कर्तव्यबुद्धि को किसी भी एक क्षेत्र में सुरक्षित करले तो फिर उसकी कर्तव्य बुद्धि सब ही क्षेत्रों में प्रभावशालिनी होकर रहनेलगती है। यह सूत्र इसी मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तको ध्यानमें रखकर लिखा गया है । सर्वत्र देखा जाता है कि जो व्यक्ति माताके प्रति उपेक्षा रखता है वह किसीके भी प्रति कर्तव्यपरायण नहीं होसकता। जो व्यक्ति दुष्टा भार्याके वशीभूत होकर माताकी अवहेलना करता है वह अपने पत्नीसंबद्ध उत्तरदायित्वकी भी उपेक्षा करचुका होता है। वह अपनी दुष्टा भार्या के विपथगमनका प्रोत्साहक बन जाता है। मातृसेवा ही घरमें शान्ति बनाये रखने. वाला प्रहरी है। यदि हृदयों मेंसे इस प्रहरीको हटा दिया जाता है तो घरकी शान्तिका बन्धन भी लिस-भिन्न होकर संसारका विनष्ट होजाना अवश्यंभावी होजाता है। निष्कर्ष यही है कि यदि राष्ट्रमें शान्ति चाहो तो घरमें शान्ति रक्खो । यदि धरमें शान्ति चाहो तो तुमपर किसी प्रकारका भौतिक दबाव न डालसकनेवाली माताका सम्मान तथा सेवा करो। जो मनुष्य धरमें शान्ति रक्खेगा वही राष्ट्रमें शान्ति रखसकेगा। माता स्वभावसे प्रेरित होकर सन्तान का पालन करती है। वह सन्तान. पालनके प्रतिदान में सन्तानसे मिलनेवालो सेवाका लोभ नहीं रखती। ससकी सन्तान मातृभक्त है या नहीं इस बातकी कल्पना माताले मनमें स्वभावसे अनुपस्थित रहती है। जैसे वृक्ष अपने मूलके सहारेसे वृद्धि पाकर ही पत्र, पुष्प, फलोंसे सुशोमित होता है इसी प्रकार सन्तान मातृमूलके सहारेसे ही जीवनीशक्ति पाकर वृद्धि पाता है। जैसे मूलसे पृथक वृक्षका जीवन संभव नहीं है इसी प्रकार माताकी गोदसे अलग सन्तानका जीवन भी संभव नहीं है । सन्तान माताके इस ऋणको किसी भी प्रकारकी सेवासे नहीं उतार सकता। उसके प्रति स्वाभाविक रूपसे अत्यन्त कृतज्ञ
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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