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________________ ऐश्वर्यमें पैशाचिकता अनिवार्य ३१३ यदि सत्पुरुष लोग संग्राम छेदनेवाले मूखोंकी आक्रामक वृत्तिको निवृत्ति करने में सफलता पालिया करते तो संसारमें मूखोंका रहना असंमव हो जाता। सत्पुरुषों से विवाद छेडना ही मूखौंका स्वभाव होता है । यह सूत्र मूखोंके संबंध बुद्धिमानका यह कर्तव्य बताना चाहता है कि बुद्धिमान् मनुष्य मूर्खसे वाग्विवाद करके उसकी आक्रामक मनोवृत्तिको रोकनेकी दुराशा न करे । बुद्धिमानका कर्तव्य तो मूर्खकी समझमें मासकनेवाले दाण्डिक उपायों के द्वारा उससे मूखोचित बर्ताव करके आत्मरक्षा करना है। इसीमें बुद्धिमत्ता है। खलानां कण्टकानां च द्विधवास्ति प्रतिक्रिया। उपानन्मुखमर्दो वा दूरतो वापि वर्जनम् ॥ दुष्र्टो तथा कण्टकों के दो ही प्रतिकार हैं। या तो इनका जने से मुखमर्दन कर दिया जाय या इनसे दूर रहा जाय । (ऐश्वर्यमें पैशाचिकता अनिवार्य ) नास्त्यपिशाचमैश्वर्यम् ॥ ३५३ ।। एश्वर्य पैशाचिकतासे रहित होता ही नहीं। विवरण- कोई भी मनुष्य पैशाचिकता (परस्वापहरण परानिष्टकरण ) धारण किये बिना भौतिक ऐश्वयंका उपासक अतुलसम्पत्तिमान नहीं बन. सकता । भौतिक ऐश्वर्यका जो दंभ या अहंकार है वह पैशाचिकताका ही तो दूसरा नाम है । जहां कहीं भौतिक ऐश्वर्य के दंभरूपी भसुरको पाओ वहीं निम्न तीन बात समझ जामो कि उसका धन पैशाचिक ढंगोंसे संग्रहित हुआ है उसीसे सुरक्षित रक्खा जा रहा है और उसके पिशाचोचित दुरु. पयोगसे समाजकी शान्तिको नष्ट किया जा रहा है । मनुष्य सत्यको त्याग बिना धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारोंमेसे तीनको त्यागकर केवल एक धनका उपासक नहीं हो सकता । सच्चे लोग धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारोंको समान महत्व देकर चारोंकी साथ-साथ उपासना करते हैं । सत्यद्रोह (या
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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