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________________ क्रोधपर कोप करना कर्तव्य विवरण- अपकारकपर क्रोध आनेवालेको अपने माभ्यन्तरिक रिपु क्रोधको ही सच्चे अपकारकके रूपमें पहचानना चाहिये । बाहरी अपकारक लोग तो मनुष्य के सामने क्रोधके कारण उत्पन्न या उपस्थित करके मानवको क्रोधाधीन न होकर संग्रामविजयी बननेका अवसर देते हैं । ऐसे महत्वपूर्ण अवसरपर क्रोधी बनते ही मनुष्यको विजयगौरवसे वंचित करदेनेवाला क्रोध उसका सच्चा शत्र सिद्ध होता है। ऐसे समय उस क्रोधको व्यर्थ करदेना ही उसकी विजय बनजाता है । मनुष्यको चाहिये कि वह शत्रुपर विजय पानेसे भी पहले अपने क्रोधी स्वभावपर क्रोध करके अक्रोध बनकर काममें हाथ लगाये । ___ कार्यका प्रसंग आते ही क्रोधमें मापसे बाहर होजाना कार्यविनाशक मानसिक स्थिति है । क्रोधसे बढकर कोई अपकारी नहीं है। अपकारीको पराजित करनेकी कला क्रोधाधीन न होने में ही है। क्योंकि अक्रोध स्वयं विश्वविजयी स्थिति है, इसलिये कोई भी अपकर्ता क्रोधविजयी मनुष्यसे उसकी विश्वविजयी स्थिति नहीं छीन सकता। अपकर्ता लोग अक्रोधके सामने पराजित होकर रहते हैं। क्रोधाविष्ट न होजाना ही अपकारीको परा. जित करना है। अपनेयमुदेतुमिच्छता तिमिरं रोषमयं धिया पुरः । आविभिद्य निशाकृतं तमः प्रभया नांशुमताप्युदीयते ॥ ( भारवि) उदयाभिलाषी लोग अपनी विवेकबुद्धिसे रोष या क्रोधसे पैदा होनेवाले अंधेरको हटायें । ये देखें कि सूर्य भी अपने तेजसे रात्रिके ध्धान्तका भेदन किये बिना उदित नहीं होता। बलवानपि कोपजन्मनस्तमसो नाभिभवं रुणद्धि यः । क्षयपक्ष इवैन्दवीः कलाः सकला हन्ति स शक्तिसंपदः॥ ( भारवि) जो बलवान् होनेपर भी क्रोधसे उत्पन्न होनेवाले मोहके आक्रमणको हटा
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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