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________________ २७६ चाणक्यसूत्राणि शिशुषध, अग्निकाण्ड आदि पैशाचिक लीलाओंका नपुंसक तटस्थ दृष्टा मात्र बना रहता है । समाजद्रोहियोंका साथी बनकर धरित्रीको असुरभोग्य शक्तिहीन खंडों में विभक्त करके रुधिराप्लावित बनाकर दशों दिशाओंको चीरकारों, हाहाकारों, करुण क्रन्दनोंसे संत्रस्त तथा त्राहि-त्राहिके करुणध्वनिसे माकाश पाताल एक करवादेनेवाली आसुरी राजशक्तिका दृष्टान्त भारत में प्रत्यक्ष है। वह अपने स्वरूपको विचारशील लोगोंके सामने पापसमर्थक छद्मवेशी असुरके रूप में रखदेता है । भारत ब्रिटिशशासन की सबसे पिठली आसुरिकलीलाके दिनों में अपने हृदयपर पत्थर रखकर अपने गगों से अपना प्रभावस्थान न बनामकनेवाले अपने अयोग्य राजाओं की करतूने देखचुका है। चाणक्यने ढाई सहस्र वर्ष पूर्व भारत के लोगों के लिये अपनी आत्मशक्ति से ही भारतको अपना प्रभावक्षेत्र बनाये रखने के सम्बन्ध जो सावधान बागी कही थी, उसकी उपेक्षा करने का दुष्परिणाम बाज के भारतके वक्षःस्थल पर रुधिररंजित भाषामें लिखा हुआ है । बात यह है कि राज्यसंस्था निर्माण करनेवाला क्षेत्र निद्रि. तावस्थामें अचेत पडा हो तो राजसिंहासन अनिवार्य रूपमें असुरोंके ही हाथों में जाता है। उस सिंहासन पर चाहे जो बैठे वही या तो मनुष्यता. घाती असुर या मसुरों के हाथोंसदका जानेवाला नराकार पशु ही होता है। यदि किसी देशको स्वराज्यके मीठे फल चखने हों, तो उसे सत्यनिष्ठ राजा के प्रभावक्षेत्र तथा मानवताका संरक्षण करनेवाले समाजको ही स्वराज्यका उपयुक्त स्थान बनाना पड़ेगा । सत्यनिष्ठाका कर्मक्षेत्र सत्यरक्षक समाज ही स्वराज्यका उपयुक्त स्थान है । असत्यनिष्ठ समाजमें स्वराज्यका कोई स्थान नहीं है। असत्यनिष्ट समाजका राज्य तो एक प्रकारका लटका ठेका है। असत्यनिष्ठ समाजमें स्वराज्य होना संभव नहीं है। असत्यनिष्ठ समाजमें शासनव्यवस्थाका अति चालाक बड़े चोरोंके हाथों में चले जाना अनिवार्य होता है । स्वराज्य के फल नेफूलनेका योग्य स्थान सत्यनिष्ठ समाजमें ही है । भसत्यनिष्ठ समाजमें बडे चोरों के हाथों में दण्डव्यवस्था होती है और छोटे चोर दण्डके भागी बनाये जाते हैं ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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