SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिस्थिति निर्माताका सम्मान २७३ ( कल्याणकारिणी परिस्थिति बनादेनेवालेका सम्मान ) अवस्थया पुरुषः सम्मान्यते ॥ ३०८॥ मनुष्य अनुकूल परिस्थितिमें ही सम्मान पाता है। विवरण- राजाके सम्मान पानेकी एक अवस्था है। राजा अपनी शासनव्यवस्थामें प्रजासे सम्मानित होने योग्य परिस्थिति पैदा करके ही प्रजासे राजभक्ति या सम्मान पानेकी भाशा करसकता है। जब तक राज्यसंस्था अपनेको प्रजाहित के अनुकूल नहीं बनालेती, तब तक उसे सम्मान प्राप्त नहीं होता। राज्य राजाका प्रभावक्षेत्र होता है। वह अपना राज्य सुप्रतिष्ठित होने की माशा तब ही करसकता है, जब वह अपने प्रभावक्षेत्र राज्यको अपने सम्मानके अनुकूल बनाले । राजाकी राजोचित यही अवस्था है कि प्रजामें उसकी प्रतिष्ठा हो। इसके विपरीत परिस्थितिमें राजाका दुर्दशाग्रस्त होकर राज्य - च्युत हो जाना अनिवार्य है। राजाका सम्मान राज्यसंस्थाके प्रजाहितकारी होनेपर ही सुरक्षित रहसकता है। समाजको गुणग्राही बनाकर अपनी राज्यसंस्थाको गुणवती बनाये रखना ही राजाके यात्मसम्मानकी आधारशिला है। राजाका सम्मान तब ही सुरक्षित रहता है जब राज्यसंस्था भी गुणियोंका आदर करनेवाली हो तथा गुणी लोग भी उसका आदर करते हों। जैसे राजा छत्र, चामर, मंत्री, सामन्त, दुर्ग, पोत, सेना मादिसे सम्मान पाता है ऐसे ही जब मनुष्यके पास धन, विद्या, मान, परिजन, अनुभव, समाजसेवा आदि समस्त अपेक्षित गुणोंके एकत्रित होनेकी अवस्था आती है तब उसे उसकी चिरकालोन तपस्या तथा सद्गुणों के प्रति प्रगाढ निष्ठासे ही सम्मान प्राप्त होता है। अथवा- जीवन के लम्बे अनुभवोंसे संपन्न बडी अवस्थावाले लोग समाजमें सम्मानकी दृष्टि से देखे जाते हैं । शूद्रोऽपि दशर्मा गतः। अवस्थावृद्ध शूद्र भी अनुभवसमृद्ध होकर पूज्य हो जाता है । १८ (चाणक्य.)
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy