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________________ › निन्दित काम मत करो २१९ पुण्य, जीवनका उद्धारक तथा एक वार किया पाप, जीवनका विनाशक अभिशाप बनजाता है । यह पाठ अप्रासंगिक है । पाठान्तर --- महती प्रसज्येत । ये तीनों पाठान्तर प्रसंगबाह्य होनेसे अपपाठ हैं । प्रतीत होता है २४० सूत्र के ये तीन सूत्र बन गये हैं । ( व्यवहारकुशलताही बुद्धिमत्ता है ) ( अधिक सूत्र ) लोके प्रशस्तः स मतिमान् ॥ व्यवहारमें कुशल ही वास्तव में बुद्धिमान् है । विवरण - अव्यवहारिक कोरे सिद्धान्तवादी बुद्धिमान् नहीं कहे जा सकते । अव्यवहारिक कोरे सिद्धान्तवादी अधार्मिक लोग उधारा रामनाम रनेवाले तथा बिल्ली के आपकडनेपर ट्याऊं व्याऊं करने लगनेवाले तोतों के समान बुद्धिहीन होते हैं । ( निन्दित काम मत करो ) ( अधिक सूत्र ) सज्जनगर्हिते न प्रसज्येत ॥ कल्याणार्थी मानव साधुजन-गर्हित कामों में प्रवृत्त न हो । तब ही पतनसे बच सकता है । विवरण - गर्हित आचरणसे समाज में दुर्दृष्टान्त उपस्थित होकर दुर्नीति बढती और उपद्रव खडे हो जाते हैं। उपस्थितविनाशानां प्रकृत्याकारेण लक्ष्यते ।। २४१ ॥ यह पाठ अपपाठ है । पाठान्तर- उपस्थितविनाशानां प्रकृतिराकारेण लक्ष्यते । विनाशोन्मुख असुरोंका सत्यद्वेषी आकार ( आचरण) उनके विनाश की सूचना दिया करता है । विनाशोन्मुख लोगों के आकारों या आचरणों में विनाशके चिन्ह और बीज छिपे रहते हैं । उनकी आसुरिकता, उनके सत्यहीन विनश्वर म्रियमाण रूपको
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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