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________________ भूखोंसे वाग्युद्ध अकर्तव्य २०९ पाठान्तर- स्वयमेवासन्न ...... । अदूरवर्ती कामों की देखभाल तथा उनके पूर्णाङ्ग होनेकी व्यवस्था स्वयं करनी चाहिये। ___ अधिक महत्ववाले या अधिक फलवाले समीपवर्ती कामोंके व्यक्तिगत निरीक्षणसे कर्तव्यों का व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करके दूरस्थ कर्मचारियोंके कर्मकी त्रुटिको अपने प्रज्ञानेत्रसे पहचानना तथा अपराधी अधिकारियोंपर अपने गंभीर परिचयका शासन स्थापित करना सीखना चाहिये । स्वयं कामका व्यावहारिक ज्ञान न रखनेवाले लोग किसीके कमकी त्रुटि नहीं पकड सकते और लोगोंसे यथार्थ काम नहीं करा सकते। कर्मकी सुसम्पन्नताका संतोष प्राप्त करने के लिये विघ्न-संकुल कामका स्वयं निरीक्षण करे । सहज-साध्य कर्म तो नियत कर्मचारियों के द्वारा हो ही जाते हैं । परन्तु राजालोग दुःसाध्य कर्मोंके संबंधों परनिर्भर न रहकर स्वयं निरीक्षण करके उसकी सुसम्पन्नताके संबंध निश्चिन्त बनें । राजाको किसी भी परिस्थितिमें राजकार्योंकी सुसम्पन्नताके संबंधमें अंधेरेमें या संदिग्ध नहीं रहना चाहिये ।। (दुःसाहस मूखेका स्वभाव ) मूर्खेषु साहसं नियतम् ॥ २२९॥ नृशंस आक्रमण, अभद्र व्यवहार, अबुद्धिपूर्वकारिता या दुःसाहस मूढेका स्वभाव होता है। विवरण- मूर्ख सदा अबुद्धिपूर्वकारी अपरिणामदर्शी तथा दुःसाहसी होते हैं। (मूोंसे वाग्युद्ध अकर्तव्य) मूर्खेषु विवादो न कर्तव्यः ॥२३०॥ हिताहितउचितानुचितविचारशून्य विवेकहीन मुखौके साथ वाग्युद्ध न ( करके उनके दुःसाहसको उचित व्यवहारसे तत्क्षण दमन ) करना चाहिये। १४ (चाणक्य.)
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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