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________________ "अनेक कर्तव्योंमेंसे आधार I इच्छुक यशोलोभी लोग अपनी इन्द्रियोंके दास होते हैं । अज्ञानी जगत् भौतिक सुखेच्छाओंका दास होता है। भौतिक सुखेच्छाओंके दास अज्ञानी जगत्का भौतिक सुख देनेकी भावना से कर्तव्यको अपनाना, समाजके बहुसंख्यकोंकी दृष्टिसे अधिक महत्वपूर्ण होनेपर भी सार्वजनिक रूपसे कभी भी महत्वपूर्ण नहीं होसकता । इस दृष्टिले समाजके अधिक से अधिक लोगोंको अधिक भौतिक लाभ पहुँचानेकी भावना ही भ्रमसे भरी हुई है । उसके मूल में ही भूल है । मनुष्यको तो, सबसे अधिक संख्यावाले अज्ञानियों की चिकी दासता करने की दुर्भावना त्याग देनी चाहिये और संपूर्ण मनुष्यसमाजका अक्षय कल्याण करनेकी कसौटी अपनानी चाहिये । मनुष्य को चाहिये कि वह संपूर्ण मानव समाजका अक्षय कल्याण करनेकी कसौटीको अपनी स्थायी व्यक्तिगत जितेन्द्रियतारूपी अक्षय शान्तिमें केन्द्रीभूत करके कर्तव्य - निर्णय किया करे, तब ही उसका कर्तव्य निर्णय अभ्रान्त हो सकता है । जितेन्द्रियता या निःस्वार्थता के आधार से किये निर्णयोंका बहुफल तथा आयतिक होना अनिवार्य है, जब कि भोगमूलक, स्वार्थमूलक या अजितेन्द्रियतामूलक निर्णयका अल्पफलक तथा आयतिनाशक होना अनिवार्य है । २०७ मनुष्य भौतिक लाभके पीछे किसी उपदेश से नहीं चलता । मानवका लोभ ही मानवको भौतिक लाभके पीछे भटकाता है। भौतिक लाभोंके पीछे पीछे मारे फिरनेके लिये उपदेशकी कोई आवश्यकता नहीं है । इस दृष्टिसे अधिक लाभके पीछे चलनेका उपदेश देना कौटल्य जैसे स्थितप्रज्ञ मुनिके इस सूत्र का अभिप्राय संभव नहीं है । इस सूत्र में तो समाजकी शान्तिको ही बहुफल कहकर उसको कर्तव्य निर्णय के लक्षणके रूप में रक्खा गया है । इसमें तो मीमांसा शास्त्रवाली परिसंख्याविधिका आश्रय करके मनुष्य के बहुमुख दृष्टिकोणों में से समाजका सच्चा कल्याण करनेवाले दृष्टिकोणको अपनाकर शेष दृष्टिकोणोंको छोड़नेके लिये कहा गया है। 66 "" - पाठान्तर - कार्यबहुत्वे बहुफलमायतिकं वा कुर्यात् । एक साथ अनेक कार्य उपस्थित होनेपर या तो तत्काल अधिक भौतिक फळवाले या भात्री में निश्चित फल देनेवाले कर्मको कर्तव्य रूप में स्वीकार करे ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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