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________________ कर्तव्य छांटने का आधार लोभसे मनुष्यकी बुद्धि विचलित होकर अपने विवेक-स्थान से बाहर निकलकर भटकने लगती है । लोभ तृषा ( अर्थात् अपने उचित अधिकार से अधिक पानेकी प्यास ) लगादेता है । तृषार्तको वर्तमान और भावी दोनों कालों में दुःख ही दुःख मिलता है । लोभी मनुष्य यथार्थता से अलग होकर आँधीसे उड़ाये पत्ते के समान उड़ा फिरा करता हैं। I २०५ ( अनेक कर्तव्यों में से एक छांटने का आधार ) कार्यबहुत्वे बहुफलमायतिकं कुर्यात् ॥ २२७ ॥ मनुष्य एक साथ अनेक कार्य उपस्थित होनेपर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण स्थायी परिणामवाला कर्म कर्तव्यरूपमें स्वीकार करे । उसे करचुकनेके पश्चात् लघु तथा अस्थायी महत्त्व रखनेवाले काम करे। विवरण -- "सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण परिणाम " यह शब्द उलझनवाला शब्द है। इसके अर्थ में अनेक मतभेद है । परन्तु वास्तव में सबसे अधिक महत्वपूर्ण परिणाम वही होता है, जिसका अधिक संख्यावाले लोगोंसे नहीं किन्तु संपूर्ण मनुष्य-समाज के साथ संबंध हो । जिस बात का संबंध समस्त मनुष्य-समाज कल्याणके साथ होता है उसका स्थायी होना भी अनिवार्य होता है | पथभ्रष्ट मानव अधिक से अधिक संख्यावाले लोगोंक भौतिक कल्याणको ख्यक भौतिक कल्याणकी अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया करता और मनुष्य समाजके सार्वजनिक स्थायी कल्याणके स्वरूपसे अपरिचित रहकर उसकी उपेक्षा ही किया करता है | अधिकसे af संख्यावाले लोगोंक भौतिक कल्याणको महत्व देनेवाला यह सिद्धान्त जल्पसके विरुद्ध बहुमतको प्राधान्य देनेवाला होनेसे " जिसकी लाठी उसकी भैंस " के सिद्धान्तका ही लोगोंको भ्रममें डालनेवाला भाषास्तर है। क्योंकि समाज में सत्यका सुप्रतिष्ठित रहना ही समाजका सच्चा कल्याण है तथा एकमात्र सत्य ही स्थायी नित्य वस्तु इस संसार में है, इन
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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