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________________ सत्य अश्रद्धालुसे मत कहो विवरण- यदि वे उसे न त्यागें तो उसके कारण उनपर भी विपत्तियां भाखडी होती हैं । पैशुन्य एक प्रकारका मानसिक पाप अर्थात् भोछा. पन है। ( उपयोगी बात नगण्यकी भी सुनो ) बालादप्यर्थजातं शृणुयात् ॥ १६७ ।। उपयोगी बातें नगण्य व्यक्तियोंसे भी सुन लेनी चाहिये । विवरण- बालादपि सुभाषितम्- हितकारी वाणी बालकों तकसे अवश्य सुननी चाहिये। युक्त मुक्तं तु गृह्णीयात् बालादपि विचक्षणः । रवेरविषयं वस्तु किं न दीपः प्रकाशयत् ।। बुद्धिमान् मनुष्य उचित बात बालकोंसे भी सीखे। जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता क्या वहां दीपकका प्रकाश लाभकारी नहीं होता ? ननु वक्तृविशेषनिःस्पृहा गुणगृह्या वचन विपश्चितः। भारवि गुणकपक्षपाती विद्वान् लोग बात के संबन्धमें वक्तांके व्यक्तित्व के विषय में निःस्पृह होते हैं। ये वक्तव्य विषय के सत्य होने मात्र से उसे श्रद्धाके साथ स्वीकार करलेते हैं। ( सत्य अश्रद्धालसे मत कहो ) सत्यमप्यश्रद्धेयं न वदेत् ॥ १६८ ॥ वात सत्य होने पर भी यदि किसी अयोग्य सत्यद्रोही श्रोताको अश्रद्धेय, कर्णकटु लगे तो उससे मत कहो और सत्यका अपमान मत करवाओ। ' विवरण- सत्यके अश्रद्धालुको सत्यसे लाभ पहुंचानेकी भ्रान्ति करना उससे झगडा मोललेना है । यदि तुम्हारा विवक्षित सत्य तुम्हारे श्रोताको श्रद्धा न पासके या उसे अनावश्यक लगे तो उससे मत कहो । मनुष्य
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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