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________________ १२६ चाणक्यसूत्राणि जब मनुष्य के पास सत्यसे तृप्तिकी अवस्था भाती है तब असत्य (असार) पदार्थ स्वभावसे उपेक्षापक्ष में चले जाते हैं। पाठान्तर- नास्त्यप्राप्यं सत्यवताम् । कर्तन्यके लिये उचित उद्योग करनेवाले पुरुषार्थी सत्यनिष्ठ मनीषी बुद्धि मान किसी भी प्राप्य वस्तु के लिए अभावग्रस्त नहीं रहते। मनका पुरुषार्थ उन्हें सब समय सत्यधनसे धनवान बनाए रखकर कर्तव्यपालनके संतोषसे पूर्णकाम बनाए रहता है। ( केवल भौतिक शक्ति कार्यका उपाय नहीं) साहसेन न कार्यसिद्धिर्भवति ॥ १५० ।। साहस ( अर्थात् केवल भौतिक शक्तिपर निर्भर हो जाने) मात्रसे काम नहीं बनता। विवरण- भौतिक शक्ति सदा अन्धी होती है । वह अपनी सफलता तथा कृतकृत्यताके लिये सुनेतृत्व चाहा करती है। सुबुद्धि ही भौतिक शक्तिका नेतृत्व तथा सदुपयोग कर सकती है। भौतिक शक्तिको सुबुद्धिका नेतृत्व न मिले तो मनुष्यका साहस दुःसाहस बनजाता है। इस सूत्र में दुःसाहसको ही अकार्यसाधक कहा जारहा है। कर्ममें साहसके भावश्यक होने पर भी केवल उसीसे काम नहीं चलता। ससके लिये अन्य भी बहुतसे साधन अपेक्षित होते हैं। ( साहसमें लक्ष्मीका वास ) ( अधिक सूत्र ) साहसे लक्ष्मी ( खलु श्री) वसति। लक्ष्मी साहसमें बसती है। विवरण- वह नियतरूपसे साहसियोंके पास रहती है। साहसके सकटमें पडनेसे बचनेवाले लोग शुभदर्शनके अधिकारी नहीं बनते। सुबुद्धि के
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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