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________________ अधिक भार उठानेसे हानि ११९ दलों में बांट डालनेवाली मत्यन्त दूषित परिपाटी है । भारतके ग्रामोंतकको पार्टियामें बांट डालनेवाली इस परिपाटीके कुफल प्रत्यक्ष हैं अल्पके विरोधमें बहुमतीय निर्णयकी इस परिपाटीको योरोपसे भारत में उधारी लानेवालोंकी अनात्मज्ञ बुद्धि की जितनी निन्दा की जाय थोडी है। राष्ट्रव्यवस्थामें सर्व. सम्मत निर्णय ही भारतीय परिपाटी है। बहुमतीय निर्णयोंको राष्ट्रघाती कहने का तात्पर्य यह है कि बहुमत सदा ही मज्ञानियोंका होता है । बहुमत सदा उन साधारण लोगों के हाथों में चला जाता है जो केवल पेटपूजा तथा वंशवृद्धि करनेसे भाधिक कुछ भी नहीं जानते । राष्ट्र देखे कि सामाजिक प्रश्नों तथा उन्हें सुलझाने के सिद्धान्तोंसे सर्वथा अपरिचित रहनेवाले भोजनभोगपरायण पशुओंकीसी स्थिति लेकर जीवनके दिन काटनेवाले लोगों को राष्ट्रीय समस्याओंके सम्बन्धमें सम्मति देनेका अधिकार दे देना तथा इन्हें फुसलाकर इनके मतोंका क्रय करके राष्ट्रप्रतिनिधि बने"हए उत्तरदायित्वहीन अप्रामाणिक व्यक्तियोंसे देशके कर्तव्यशास्त्र ( अर्थात् व्यवस्थायें ) बनवाना तथा राज्यप्रबन्धमें सम्मति लेना बन्दरों के हाथों में छुरा पकडा देने जैसी प्रलय मचा देनेवाली कल्पना है । ( शक्तिसे अधिक भार उठानेसे हानि ) अतिभारः पुरुषमवसादयति ॥ १४६ ।। अतिभार (शक्तिसे अधिक कर्मका भार ) मनुष्यको हतोत्साह तथा क्लान्त करके उसके कर्मको अनिवार्यरूपसे निष्फल बना डालता या नष्ट कर देता है। विवरण- इस प्रसंगमें अतिभार तथा उचित भारके स्वरूपका प्रश्न स्वभाव से उपस्थित होता है । भार कर्मका स्वाभाविक साथी है। कर्मके साथ भार स्वभावसे लगा रहता है। उत्तरदायित्व हो भार है । यह भार मूलतः भौतिक न होकर मानसिक होता है । कर्ता अपने विवेकके सम्मुख अपने कर्मका उत्तरदायी होता है । जब उत्तरदायित्व अपना सीमोल्लंघन
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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