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________________ ११४ चाणक्यसूत्राणि अपने पास बुलाना है। परन्तु दण्डके संबन्धमें राजाका यह बड़ा सावधान कर्तव्य है कि दण्ड मौचित्यकी सीमाका उल्लंघन भी न करे और मपराधसे न्यून भी न हो। उसे यह ध्यान रखना चाहिये कि माततायी लोगोंके साथ मृदु बर्ताव न किया जाय । आततायिनमायान्तं हन्यादेवाविचारयन् । नाततायिवधे दोषो हन्तुर्भवति कश्चन ॥ मनु भाततायीको माता देखकर और इसके आततायी होनेका निश्चय हो जानेपर उसे बिना भागा पीछा देखे मार डाले। माततायीके वधसे हन्ताको कोई दोष या अपराध नहीं लगता । रक्षात्मक भाक्रमण करनेवाला भाक्रमण. जन्य वधका अपराधी नहीं होता। ( दण्डमें औचित्यकी आवश्यकता ) यथार्हदण्डकारी स्यात् ॥ १४४।। उचित यही है कि राजा यथायोग्य दण्ड देनेवाला हो । विवरण- उचितकारी ही सफल शासक बन सकता है। क्योंकि कठोर दण्ड जनतामें उद्वेग तथा राजद्रोह फैलाता है, इसलिये दण्डमें अपराधकी गुरुता लघुताका पूरा ध्यान रहना चाहिये । लघु अपराधमें गुरु दण्ड, निरप. राध भवस्थामें तीव्र या लघु दण्ड, गुरु अपराध लधु दण्ड या दण्डाभाव न होनेका पूरा ध्यान रखना चाहिये। कहा भी है अदण्ड्यान् दण्डयन् राजा दण्ड्यांश्चैवाप्यदण्डयन् अयशो महदाप्नोति नरकं चैव गच्छति । अनुबन्धं परिज्ञाय देशकालौ च तत्वतः सारापराधौ चालोक्य दण्डं दण्ड्येषु पातयेत् ॥ राजा दण्डनीयोंको दण्ड न देने और भदण्डनीयोंको दण्ड देनेसे बड़ा अपयश पाता और कष्टपरम्परामें उलझ जाता है। राजा पहले तो अपराधके कारणों तथा अपराधकी परिस्थिति और कालको देखे फिर अपराधीकी
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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