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________________ ११२ चाणक्यसुत्राणि (खामीक स्वभाव परिचयका लाभ } स्वामिनः शीलं ज्ञात्वा कार्यार्थी कार्य साधयति ॥ १३९ ॥ कार्यों में नियुक्त लोग अपने आश्रयदाता स्वामीकी रुचिको पहचानकर तदनुसार कार्य किया या कराया करते हैं । विवरण- राजाके वीर होनेपर उसके अनुयायी लोग उसकी रुचिके मनुयायी वीर होकर उसकी नियुक्तिके अनसार कार्यको सुसंपस कर लेते हैं । इसके विपरीत राजाके कापुरुष होनेपर उसके अनुचर भी कार्यक्षेत्र में कापुरुषताका ही प्रदर्शन करते हैं । पाठान्तर--- स्वामिनः शीलं विज्ञाय कार्यार्थी कार्य साधयेत् । धेनोः शीलज्ञः क्षीरं भुक्ते ॥ १४०॥ जैसे दुग्धार्थी धेनुके स्वभावको जानकर जिप्त रीतिसे संभव होता है, उसी रीतिसे उससे दुग्ध प्राप्त करलेता है इसी प्रकार राजसेवक राजाको रुचिके अनुकुल राजसेवा करके अपना राष्ट्रसेवा नामक उद्देश्य पूरा किया करते हैं। पाठान्तर - धेनोः क्षीरं शीलज्ञो भुंक्त । ( गुह्य बताने के अनधिकारी ) क्षुद्रे गुह्यप्रकाशनं आत्मवान्न कुर्वीत (कुर्यात)॥१४१॥ मनस्वी धीमान् मनुष्य मन्दमति, अनीतिज्ञ, नीच, चंचलवुद्धि अनुचरको अपनी गुह्य बात न बता दे। विवरण-- फूटे पात्रमेंसे जलके समान क्षुद्र के पेटमें गुह्य बात नहीं खपती। गह्य बात उसके पेट में रेचक औषधका काम करती है। उससे उसे सर्वत्र घोषित किये बिना नहीं रहा जाता। क्षुद्र के पास गुह्य बात पहुंचनेसे बातका उद्देश्य तो नष्ट होजाता है और उसके स्थानपर अनर्थको सष्टि होजाती है। पाठान्तर- क्षुद्र गुह्यप्रकाशनमात्मवता न क्रियेत ।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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