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________________ सर्वविधसंपत्ति संग्रह ( सुअवसरपर कर्म करनेका लाभ ) परीक्ष्यकारिणि श्रीश्चिरं तिष्ठति ।। ११३ ।। सुअवसर पहचानकर कर्म करनेवाले के पास श्री ( अर्थात् सफलता ) नियमसे रहती है। अधिक सूत्र- सर्वाश्च संपद उपतिष्ठन्ति । देश, काल पहचानकर काम करनेवालेके पास समस्त संपत्तियां स्वयमेव आविराजती हैं। ( सर्वविधसंपत्ति संग्रह राष्ट्रीय कर्तव्य ) सर्वाश्च संपदः सर्वोपायेन परिग्रहेत् ॥११४॥ राजा साम, दाम आदि समस्त बुद्धिकौशलोस अपने तथा प्रजाके पास सब प्रकारकी मानवोचित संपत्तियोंके संग्रह करने में प्रयत्नशील रहे जिनसे समय पडनेपर अपन देशकी उत्तमोत्तम सवा कर सक। विवरण- भूमि, रत्न, मान, धर्म, कीर्ति, सुशोल, स्वास्थ्य, शिष्टाचार, व्यवहारकौशल विद्या तथा देशविदेशोंकी भाषा आदि संपत्ति के अनेक भेद हैं। जब राजाको राज्यरक्षा आदि तात्कालिक महत्व रखनेवाले कामों के लिये धनकी श्रावश्यकता पडे तब वह प्रजासे न्यायपूर्वक धनसंग्रह करे । विशेष आवश्यकता पडनेपर राज्यकोषको संपन बनाने के संब. न्धमें शुक्राचार्य ने कहा है देवद्विजातिशूद्राणामुपभोगाधिकं धनम् । क्षीणकोशेन संग्राहा प्रविचिन्त्य विभागतः ॥ क्षीण कोशवाला राजा लोगोंके उपभोगसे अधिक धनको आंशिक रूपसे इस प्रकार ले कि जिससे लिया जाय उसके पास जीविकाके साधनोंका अभाव न हो जाय।
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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