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________________ चाणक्यसूत्राणि ( अशुभ परिणामी कर्म अकर्तव्य ) दुरनुबन्धं कार्यं नारभेत ।। १०६ ॥ मनुष्य निश्चित शुभ परिणाम न रखनेवाले कार्योंमें हाथ न डाले। विवरण- इसका अर्थ यह हुमा कि मनुष्य काम छेडनेसे पहिले उसकी सार्वजनिककल्याणकारिता, सत्यनुमोदितता, अनिवार्यकर्तब्यता, गुणागुण, श्रेष्ठता, दुष्टता, हानि. लाभ, यश अपयश आदि समस्त दृष्टिकोणोंपर माद्योपान्त पूरा विचार करले । यदि वह कार्य इस परीक्षामें दुग्नुबन्ध अर्थात् अशुभमिश्रित सिद्ध हो तो उसे निश्रित अशुभ समझ. कर ही नहीं अपनाना चाहिये । मनुष्य यह जाने कि उपके पाम आनेवाले समम्त काम करनेके ही लिये नहीं माते । उनमेंसे कुछ अस्वीकृत होनेके लिये भी भाते हैं। मनुष्यके पास कुछ काम ऐसे भी माते हैं जिन्हें त्यागने में ही उसका कल्याण होता है। अकल्याणकारी कर्तव्यों को त्यागना भी कर्तव्य ही होता है। ( कार्यसिद्धिमें अनुकूल समयका माहात्म्य ) कालवित कार्य साधयेत् ।। १०७ ।। अनुकूल समय ( अनुकूल परिस्थिति ) का पहचाननेवाला अपना काम अनायास वनालेता है। दशं कालं तथात्मानं द्रव्यं द्रव्यप्रयोजनम् । उपपत्तिमवस्थां च ज्ञात्वा कार्य समारभेत ॥ मनुष्य देश, काल, आत्मशक्ति, द्रव्य तथा उसका उपयोग, उपाय और अवस्थाको जानकर कम करे कः कालः कानि मित्राणि को देशः को व्ययागमौ। इति संचिन्त्य कर्माणि प्राज्ञः कुर्वीत वा न वा ॥ बुद्धिमान् पुरुष क्या समय है? कितने सहायक हैं ? क्या परिस्थिति है ?
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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