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________________ उपायसे कार्यमें सुकरता विवरण-- साम, दाम, दण्ड, भेद, माया, उपेक्षा तथा इन्द्रजाल नामक उपाय कार्यसिद्धि के परिस्थित्यनुपारी सात उपाय हैं। राजा लोग इनमेंसे कार्यसाधक उपायोंको ठीक ठीक पहचानें । उपायचिन्ता ही राज्यश्रीकी वृद्धि का एकमात्र कारण है । - सुवचन तथा सुन्यवहारसे दूसरोंको अनु. कूल बनाना 'साम' नामका ४पाय है । २- स्वाधिकृत द्रन्य दूसरेको देकर विनिमयमें उसकी अनुकूलता प्राप्त करना 'दाम' नामक उपाय माना जाता हैं। ३- शत्रुका धनप्राणहरण तथा ताडन 'दण्ड ' नामका उपाय है। ४शत्रुनों में परस्पर कलह पैदा करना 'भेद' नामका उपाय है। ५- जिह्म तथा अनृतले शत्रुकी प्रवंचना करना 'माया' नामका उपाय है । ६- शत्रुसे मसहयोग ' उपेक्षा ' नामका उपाय है । ७- शत्रुके विरुद्ध षड्यन्त्र 'इन्द्रजाल' नामका उपाय है। ( उपायसे कार्य में सुकरता ) उपायपूर्वं न दुष्करं स्यात् ॥ २४ ॥ कार्य उपायपूर्वक करनेसे दुष्कर नहीं रहता। विवरण- कार्य अव्यर्थ उपायका अवलम्बन कर नेपर सुगम हो जाता है। कतव्यमें दुष्करताका कोई अर्थ नहीं है। कर्तव्य सदा मानवीय साम. ८4 के अधीन होता है। जो ऐसा नहीं होता वह कर्तव्य नहीं होता। दुष्कर समझे हुए कर्तव्य का अर्थ उसे करने के लिये प्रस्तुत न होना या कर्तव्यभ्रष्टता ही होता है। किसी कर्तव्य के लिये प्रस्तुत न होना ही उसकी कठिन. नाका रूप होता है । ज्यों ही मनुष्य किसी कर्तव्य के लिये उद्यत होता है त्यों ही कर्तव्यसंपादक साधन अनिवार्य रूपसे संगृहीत हो जाते हैं । कम्यमानके विघ्नको हटाने को अनिच्छा ही कठिनता बन जाती है। कठिनताके प्रति कठोर होते ही कठिनता सु झरनामें परिणत हो जाती है । सचे लोगों का हार्दिक संबन्ध कर्तव्य के बाह्य रूप से न होकर केवल उस के निश्चः यात्मक रूपके साथ होता है । कर्तव्य के बाहः भातिक रूपका कर्तव्यको
SR No.009900
Book TitleChanakya Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamavatar Vidyabhaskar
PublisherSwadhyaya Mandal Pardi
Publication Year1946
Total Pages691
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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