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________________ षष्ठ परिच्छेद ॥ (२२१) (प्रश्न ) “अरिहंताणं" पदमें महिमा सिद्धि क्यों सन्निधिष्ट है ? ( उत्तर ) “अरिहंताणं” पदमें जो महिमा सिद्धि सन्निविष्ट है उसके ( क ) “अरिहंताणं" इस प्राकृत पदका संस्कृत पर्याय (') "अर्हताम्" है, “अईपूजायाम्” अथवा “अहं प्रशंसायाम्” इस मधातु ने अहंत् शब्द बनता है, अतः जो पूजा व प्रशंसा के योग्य हैं उन को अहत् कहते हैं, पूजा और प्रशंसा का हेतु महत्व अर्थात् महिमा है, तात्पर्य यह है म हमा से विशिष्ट (२) अर्हतों का ध्यान करने से महिमा सिद्धि की प्राप्ति होती है। ( ख ) “अहत्" शब्द की व्याख्या में प्रायः सब हो टीकाकारों ने यही व्याख्या की है कि “जो शक्र (३) आदि देवों से नमस्कृत (४) और श्रष्ट (५) महाप्रातिहार्यों से विशिष्ट होकर पूजा के योग्य हैं उन को अहंत् वा जिन कहते हैं भला ऐसे महत्वसे विशिष्ट अर्हतों के ध्यान से महिमा सिद्धि की प्राप्ति क्यों नहीं होगी, अतः मानना चाहिये कि "मरहंताणं” पद में महिमा सिद्धि सन्निविष्ट है। (ग) सिद्धि का गर्भाक्षर ( मध्याक्षर ) हकार उक्त पदके गर्भ में है अतः शब्द सामर्थ्य विशेष (७) से "अरिहंताणं पद के ध्यानसे महिमा सिद्धि की प्राप्ति होती है। (घ) “अरिहंताणं” इस पदका संस्कृत पर्याय “अरिहन्तृणाम्” भी होता है, अर्थात् जो इन्द्रिय विषयों और कामादि शत्रुओं का नाश करते हैं उन को अरिहन्त ( अरिहन्त ) कहते हैं । कामादि शत्रुओं का दमन (८) वा नाश करना महात्माओं वा महानुभावों का कार्य है, अतः श्री अरिहन्त रूप महानुभावों का ध्यान करने से महिमा सिद्धि की प्राप्ति होती है। (ङ) “अरिहन्ताणं" इस पद में योगिजनों की क्रिया के अनुसार म. हिमा मिद्धिके लिये इस क्रिया का प्रतिभास (९) होता है कि योगीजन "अ" अर्थात् करउ स्थानमें स्थित उदान वायको "र" अर्थात् मूर्धा स्थान पर ले जाते हैं, पीछे “इ” अर्थात् ताल देशमें उसका संयम करते हैं, साथ में १-एकार्थ वाचक शब्द ॥ २-युक्त ॥ ३-इन्द्र॥४-नमस्कार किये हुए ॥५-आठ ॥ ६-आठ महाप्रातिहार्यों का स्वरूप प्रथम लिख चुके हैं ७-शक्ति विशेष ॥ ८-दबाना॥ ६-प्रकाश, विज्ञप्ति, सूचना । Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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