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________________ (२१८) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ ब्रह्माण्ड में, मा अर्थात् लक्ष्मी भगवती की, उ अर्थात् अनुकम्पा का ध्यान करते हैं तथा लक्ष्मी भगवती का रूप सूक्ष्म है, अतः उक्त क्रिया के करने से जिस प्रकार उन्हें अणिमा सिद्धि की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार “णमो” पदके ध्यानसे अणिमा सिद्धि की प्राप्ति होती है, अतः "णमो पदमें प्र. णिमा सिद्धि सन्निविष्ट है। ... (अ) विशेष बात यह है कि “णम” इस पदमें अतिशक्ति (१) म.. हत्त्व (२) यह है कि इस पदमें सर्वसिद्धियों के देनेकी शक्ति विद्यमान है, इसके लेखन प्रकार (३) के विषयमें कहा गया है किः कुण्डलीत्त्वगता रेखा, मध्यतस्तत ऊध्वंतः ॥ घामादधोगता सैव, पुनरूध्वं गता प्रिये ॥ १॥ ब्रह्मेशविष्णुरूपा सा, चतुर्वर्गफलप्रदा ॥ ध्यानमस्य णकारस्य, प्रवक्ष्यामिचतच्छृणु ॥२॥ द्विभुजां वरदांरम्यां, भक्ताभीष्टप्रदायिनीम् ॥ राजीवलोचनां नित्यां, धर्मकामार्थ मोक्षदाम् ॥ ३॥ एवं ध्यात्वा ब्रह्मरूपा, तन्मन्त्रं दशधा जपेत् ॥ ४ ॥ (इति वर्णोद्धारतन्त्र ) ॥ अर्थ-णकार अक्षर में मध्य भागमें कुण्डली रूप रेखा है, इसके पीछे वह अर्ध्वगत (४) है, फिर वही वामभागसे (५) नीचे की तरफ गई है और हे प्रिये ! फिर वही ऊपर की गई है ॥१॥ 'वह ( त्रिविध रेखा ) ब्रह्मा, ईश और विष्णरुप है, और चतुर्वर्ग रूप फल को देती है, अब मैं इस कार के ध्यान को कहता हूं, तुम उसे सुनो ॥२॥ , दो भुजावाली, वरदायिनी, सुन्दरी, भक्तों को अभीष्ट फल देनेवाली कमल के समान नेत्रवाली, अविनाशिनी (६) तथा धर्म काम अर्थ और मोक्ष को देनेवाली, उस ब्रह्मरूपाका ध्यान कर उसके मन्त्र को दश प्रकारसे जपे ॥३॥४॥ . ५-अतिशय युक्त, अधिक ॥२-महिमा, विशेषता ॥३-लिखनेकी रीति ॥४ऊपर को गई हुई ॥ ५-बाईं ओर ॥ ६-विनाश रहित । .. Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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