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________________ पष्ट परिमद। (ख) अथवा “णमो” शब्द की सिद्धि इस प्रकार जाननी चाहियो कि 'न उमा" ऐसी स्थिति है, यहां न अध्यय निषेधार्थक (१) नहीं; किन्तु "अब्राह्मसमानय” इत्यादि प्रयोगोंके समान सादृश्य (२) अर्थ में है, प्रतः यह अर्थ होता है कि-उमाके सदृश जो महामाया रूप प्रादि शक्ति है उसका ध्याता जन ध्यान कर अणिमा सिद्धि को प्राप्त होते हैं, इस व्यवस्था में उमा” शब्द के उकार का प्राकृत शैली से लोप हो जाता है, तथा प्रा. कार के स्थान में "स्वराणां स्करः" इस सूत्रसे ओकार आदेश हो जाता है तथा प्रादिवर्ती (३) नकार के स्थान में "नोरणः सर्वत्र” इस सूत्र से कार आदेश. हो जाता है,इस प्रकार से "समो” शब्द को सिद्धि हो जाती है, अब तात्पर्य यह है कि जैसे उमाके सदृश महामाया सूप श्रादि शक्ति का ध्यानकर ध्याता (४) जन अणिमा सिद्धि को प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार "गमो. पदके ध्यानसे अणिमा सिद्धि प्राप्त होती है, अतः "णमो” पदमें अणिमा सिद्धि सन्निविष्ट है। (ज) “समो” पदका आकार अणिमा शब्द में गर्मित (५) है तथा अन्त में मकार तुल्यानुयोगी (६) है, अतः ‘णमो" पदके जप और ध्यानसे अणि. मा सिद्धि की प्राप्ति होती है, यही तो कारण है कि "णमो” पदको प्रथम रक्सा है, अर्थात् उपासना क्रिया वाचक (9) शब्द को प्रथम तथा सपास्य देव पाचक (८) शब्द का पीछे कथन किया है, अर्थात् “अरि हताणं णमो इत्यादि पाठ को न रखकर "गामो अरिहंताणं इत्यादि पाठ को रक्खा है किञ्च-शकार अक्षर के अशुभ होनेपर भी ज्ञाम वाचक होनेके कारण महल स्वरूप होनेसे आदि मङ्गल के लिये तथा प्रादि अक्षर को सिद्धि गर्भित दि. खलानेके लिये "णामो” पदको पहिले रक्खा गया है। (क) अथवा “गा, मा, उ,” इन अक्षरों के संयोग से "समो” शब्द धमा ता है, अतः यह अर्थ होता है कि ध्याता जन णकार स्थान मूर्धा में अर्थात् १-निषेध अर्थका वाचक ॥ २-समानता ॥३-आदिमें स्थित ॥ ४-ध्यानकर्ता । ५-गर्भ (मध्य ) में स्थित ॥६-समान अनुयोग ( सम्बन्ध विशेष ) से युक्त ॥ ७-उपा. सना रूप क्रिया का वाचक ॥ ८-उपासना करने योग्य देव का वाचक ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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