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________________ ( २०० ) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ किन्तु समस्त पापों का समूल नाश होकर उत्कृष्ट (९) मङ्गल होता है जिससे उन पापों का फिर कभी उद्भव (२) आदि नहीं हो सकता है । ( प्रश्न ) - सातवें पद के कथन का प्रयोजन तो हमारी समझ में आ गया; परन्तु इस में सर्व शब्द का प्रयोग क्यों किया गया, क्योंकि 'पावणासणी" यदि इतना ही कथन किया जाता तो भी "पापानि प्रणाशयतीति पापप्रणाशनः” इस व्युत्पत्ति के द्वारा यह अर्थ हो सकता था कि - "यह पञ्च नमस्कार सब पापों का नाश करने वाला है" फिर सर्व शब्द का प्रयोग क्यों किया गया ? ( उत्तर ) - "पापानि प्रणाशयतीति पापप्रणाशनः इस व्युत्पत्ति के द्वारा यद्यपि यह अर्थ सिद्ध हो सकता था कि- "यह पञ्च नमस्कार सब पापों का नाशक (३) है” तथापि (४) इस अर्थ का परिज्ञान होना प्रथम तो विद्वद्गम्य (५), है, दूसरे जैसे “पापानि प्रणाशयतीति पापप्रणाशनः इस व्यु त्पत्ति के द्वारा सर्व पापों के नाशकर्त्ता (६) को पापप्रणाशन कहते हैं; उसी प्रकार "पापं प्रणाशवतीति पापप्रणाशनः” इस व्युत्पत्ति के द्वारा एक पाप के ( अथवा कुछ पापों के ) नाश करने वाले को भी तो "पापप्रणाशन” कह सकते हैं, अतः यदि सर्व शब्द का प्रयोग न किया जाता तो यह शङ्का बनी ही रह सकती थी कि यह पञ्च नमस्कार एक पाप का नाश करता है, अ थवा कुछ पापों का नाश करता है, वा समस्त ( 9 ) पापों का नाश करता है, अतः इस शङ्का की सर्वथा निवृत्ति के लिये तथा सर्व साधारण की बुद्धि में ययार्थ (c) अर्थ समाविष्ट (९) हो जाने के लिये सर्व शब्द का प्रयोग किया गया है । ( प्रश्न ) इस मन्त्र का आठवां और नवां पद यह है कि "मंगला च सव्वेसिं" "पढमं हवइ मंगलं " इन दोनों का मिश्रित (१०) अर्थ यह हैं कि " ( यह पञ्च नमस्कार ) सब मंगलों में प्रथम मंगल है” अब इस विषय में प्रष्टव्य (११) यह है कि आठवें पदमें "सब्वेसिं" इस कथन के द्वारा सर्व शब्द का प्रयोग क्यों किया गया, यदि इसका प्रयोग न भी किया जाता तो भी "मंगला" इस बहुवचनान्त पद से सर्व शब्द के अर्थ का भान (१२) हो सकता था, अतः “सब्वेसिं" यह पद व्यर्थ सा प्रतीत (१३) होता है ? ४- तो भी ॥ ५-विद्वानों से ८-ठीक सत्य ॥ ६-हृदयस्थ ॥ १ - उत्तम ॥ २ उत्पत्ति ॥ ३ नाश करने वाला ॥ जानने योग्य ॥ ६-नाश करने वाले ॥ १० - मिला हुआ ॥ ११- पूंछने योग्य ॥ १२- ज्ञान ॥ १३- ज्ञात ॥ ७- सब ॥ " Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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