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________________ (१६८) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ कि “ये पांच नमस्कार, तो यह अर्थ ठीक नहीं है, क्योंकि इस दशा में उक्त द्विगु समास का प्रयोग स्त्रीलिङ्ग में अथवा नपुंसक लिङ्ग में होगा, जैसा कि “त्रिलोकी” “त्रिभुवनम्” “पञ्चपात्रम्” इत्यादि पदोंमें होता है, किन्तु यहां पर पंल्लिङ्ग का निर्देश (१) है; अतः (२) द्विगु ससास न कर ऊपर लिखे अनुसार तत्पुरुष समास ही करना चाहिये। (प्रश्न)-उक्त वाक्य में पञ्च शब्द का प्रयोग क्यों किया गया “एसो णमोकारो” इतना ही कहना पर्याप्त था, क्योंकि इतना कहने से भी पांचों का नमस्कार जाना जा सकता था ? (उत्तर)-उक्त पद में “पञ्च” शब्द का प्रयोग स्पष्टताके लिये है अर्थात् स्पष्टतया (३) पांचों का नमस्कार समझ लिया जावे दूसरा कारण यह भी है कि-इस पद में “एसे।" यह एतद् शब्द का रूप है तथा एतद् शब्द प्रत्यक्ष और आसन्नवर्ती (४) पदार्थ का वाचक (५) है, अतः यदि पञ्च शब्दका प्रयोग न किया जाता तो केवल समीपवर्ती (६) साध नमस्कार के ही ग्रहण की सम्भावना हो सकती थी, अर्थात् पांचों के नमस्कारके ग्रहण की सम्भा. वना नहीं हो सकती थी, अथवा कठिनता से हो सकती थी, अतः “पञ्च' शब्द का ग्रहण स्पष्टता के लिये किया गया है कि स्पष्टतया (निभ्रम) पांचों का नमस्कार समझा जावे।। [प्रश्न ]-सातवां पद "सव्वपावप्पणासणो" है, इस पदका कथन क्यों किया गया है, क्योंकि आठवें और नवें पदमें यह कहा गया है कि " (यह पञ्च नमस्कार ) सब मङ्गलों में प्रथम मङ्गल है” तो इस के प्रथम मङ्गलरूप होने से अापत्ति (७) प्रमाण के द्वारा यह बात सिद्ध हो जाती है कि-"यह सब पापों का नाशक है” क्योंकि पापों के नाश के विना मङ्गल हो ही नहीं सकता है, अतः इस सातवें पद का प्रयोग निरर्थक (८) सा प्रतीत (6) होता है ? [ उत्तर]-पाठवें और नवें पद में जो यह कहा गया है कि " ( यह पञ्चनमस्कार ) सब मङ्गलों में प्रथम मङ्गल है” इस कथन के द्वारा यद्यपि १-कथन, प्रतिपादन ॥ २-इसलिये ३-स्पष्ट रीतिसे ॥ ४-समीपमें स्थित ॥ ५-कहनेवाला ॥६-पासमें स्थित ॥ ७-देखा अथवा सुना हुआ कोई पदार्थ जिस के विना सिद्ध नहीं हो सकता है उसकी सिद्धि अर्थापत्ति प्रमाण के द्वारा होती है । ८-व्यर्थ ॥ ६-ज्ञात, मालूम ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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