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________________ ( १४ ) श्रीमन्त्रराजगुणकल्प महोदधि | विषय अरिहंताणं" आदि पदोंमें पष्ठी विभक्तिका प्रयोजन षष्ठी के बहुवचन का प्रयोजन श्री अर्हदेव के ध्यान की विधि सिद्धों का स्वरूप तथा सिद्ध शब्द का अर्थ सिद्धों को नमस्कार करने का कारण सिद्धों के ध्यान की विधि आचार्यों का स्वरूप आचार्यों को नमस्कार करने का कारण आचार्यों के ध्यान की विधि उपाध्यायों का स्वरूप उपाध्यायों को नमस्कार करने का कारण उपाध्यायों के ध्यान की विधि ... ... ... ... ... *** ... ... 72% ... साधुओं का स्वरूप साधुओं को नमस्कार करने का कारण साधुओं के ध्यान की विधि पांचवें पद में " लोए" पद के रखने का प्रयोजन पांचवें पद में "सत्र" पदके रखने का प्रयोजन पश्च परमेष्ठियों के नमस्कार में संक्षिप्त तथा विस्तृत नमस्कार विषयक विचार अरिहंत आदि पदों के क्रमसे रखनेके प्रयोजन मङ्गल शब्द का अर्थ तथा पञ्च नमस्कार के प्रथम मङ्गल रूप होने का कारण 'श्री नवकार मन्त्र के ६८ अक्षर तथा उनका प्रयोजन "हवर मंगलं " ही पाठ ठीक है, किन्तु "होइ मंगलं" नहीं पंच परमेष्ठियोंके १०८ गुण अरिहंत के १२ गुणों का विस्तार पूर्वक वर्णन.. सिद्ध के आठ गुणों का वर्णन आचार्य के ३६ गुणों का वर्णन उपाध्याय के २५ गुणों का वर्णन 800 ... ... ... 010 Aho! Shrutgyanam ... 8.0 ६०. ... ... 8. ... ... ... ... ... ... पृष्ठसे १५८ १५६ १५६ १५६ १६० १६० १६० १६१ १६२ १६२ १६३. १६४ १६४ १६५ १६६ १६६. १६६. १६८ १६८ १७३ १७१ १७२ १७३ १७३ १७७ १७८ १८२ पृष्ठतक १५६ १६० १६१ १६२ १६३ १६४ १६५ १६८ १६६ १७१ १७२ १७३ १७७ १७८ १८१
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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