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________________ ( १६४ ) श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ पारगामी (१), (द्वादशाङ्गी के धारक (२), सूत्र और अर्थ के विस्तार करने में रसिक होते हैं. सम्प्रदाय (३) से आये हुए जिनवचन का अध्यापन करते हैं इस हेतु भव्य (४) जीवों के ऊपर उपकारी होने के कारण उनको नमस्कार करना उचित है । ( प्रश्न ) उपाध्यायों का ध्यान किस के समान तथा किस रूप में करना चाहिये ? ( उत्तर ) उनका ध्यान मरकतमणिके समान नीलवर्ण में करनाचाहिये । ( प्रश्न ) " णमो लोए सव्व साहू" इस पद के द्वारा साधुओं को नम - स्कार किया गया है उन ( साधुओं) का क्या लक्षण है अर्थात् साधु किन को कहते हैं ? ( उत्तर ) - जो ज्ञानादि रूप शक्ति के द्वारा मोक्ष का साधन करते हैं साधु कहते हैं (५) । उन को ( श्रथवा ) - जो सब प्राणियों पर समश्व का ध्यान रखते हैं उन को साधु (६) कहते (9) हैं । अथवा - जो चौरासी लाख जीवयोनि में उत्पन्न हुए समस्त (८) जीवों के साथ समत्व (९) को रखते हैं उनको साधु कहते हैं । अथवा जो संयम के सत्रह भेदों का धारण करते हैं उन को साधु कहते हैं (१०) । १- पार जाने वाले ॥ २-धारण करने वाले ॥ ३-आम्नाय, गुरुपरम्परा ॥ ४- "भवसि - द्धिको भव्यः” अर्थात् उसी ( विद्यमान ) भव में जिसको सिद्धिकी प्राप्ति हो जाती है उस को भव्य कहते हैं ॥ ५ - "ज्ञानादिशक्त्यामोक्षं साधयन्तीति साधवः ॥ ७-“समत्वं ध्यायन्तीति साधवः” इति निरुक्तकाराः ॥ ६ - कहा भी है कि - " निव्वाण साहए जीए, जम्हासाहन्ति साहुणो ॥ समाय सञ्चभूएसु, तम्हाते भात्र साहुणो ॥१॥ जिस लिये साधुजन निर्वाणसाधन को जानकर उस का साधन करते हैं तथा सब प्राणियों पर सम रहते हैं; इस लिये वे भावसाधु कहे जाते हैं ॥१॥ ८-सर्व ॥ ६-समता, समानता; समव्यवहार || १० - कहा भी है कि- “ विसयसुहनियर्त्तणं, विसुद्धचा रिन्तनियम जुत्ताणं ॥ तञ्च गुणसाहयाणं, साहणकिच्चुज्ञायण नमो ॥ १ ॥ अर्थात् जो विषयों के सुख से निवृत्त हैं, विशुद्ध चारित्र के नियम से युक्त हैं, सत्य गुणों के साधक हैं तथा मोक्षसाधन के लिये उद्यत हैं उन साधुओं को नमस्कार हो ॥१॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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