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________________ पञ्चम परिच्छेद ॥ ( १६३ ) अथवा- -जिन के समीपत्त्र से सूत्र के द्वारा जिन प्रवचन का अधिक ज्ञान तथा स्मरण होता है उनको उपाध्याय (९) कहते हैं (२) । अथवा जो उपयोग पूर्वक ध्यान करते हैं उनका नाम उपाध्याय है (३) । अथवा जो उपयोगपूर्वक ध्यान में प्रवृत्त हो कर पापकर्म का त्याग कर उस से बाहर निकल जाते हैं वे उपाध्याय कहे जाते हैं । T अथवा जिन के समीप में निवास करने से श्रुत का प्राय अर्थात् लाभ होता है उनको उपाध्याय कहते हैं (४) । अथवा जिन के द्वारा उपाधि अर्थात् शुभविशेषणादि रूप पदवी की प्राप्ति होती है उनको उपाध्याय कहते हैं (५) प्रथवा जिन में स्वभावतः ही इष्ट फल की प्राप्ति का कारणश्व रहता है उनको उपाध्याय कहते हैं (६) । अथवा मानसिक पीड़ा की प्राप्ति, कुबुद्धि की प्राप्ति तथा दुर्ध्यान की प्राप्ति जिन के द्वारा उपहत होती है उनको उपाध्याय कहते हैं (७) । ( प्रश्न ) उक्त लक्षणों से युक्त उपाध्यायों को नमस्कार करने का क्या हेतु है ? उत्तर-उक्त उपाध्याय २५ गुणों से युक्त होते (८) हैं, द्वादशाङ्गी (९) के १- " उपसमीपे सूत्र तो जिनप्रवचनमधीयते प्रकर्षतया ज्ञायते स्मर्यते वा शिष्यज तैर्येभ्यस्ते उपाध्यायाः" इति व्युत्पत्तेः ॥ २-अन्यत्र भी कहा है कि-वारसङ्गो जिणक्खाओ स माओ कहिओ बुहिं" तं उवइसन्ति जम्हा, उवज्झाया तेण बुझन्ति ॥ १ ॥ अर्थात् ( अर्थ के द्वारा ) जिनोक्त द्वादशाङ्गको बुद्धिमान् खाध्याय कहते हैं, जिस लिये उस का उपदेश देते हैं इसलिये उपाध्याय कहे जाते हैं ॥ १ ॥ ३- “ उप उपयोगेन आ स मन्तात् ध्यायन्तीति उपाध्यायाः ॥ ४-" उपसमीपे अधिवसनाच्छु तस्यायो लाभो भवति येभ्यस्ते उपाध्यायाः " ॥ ५-" उपाधरायो येभ्यस्ते उपाध्यायाः ॥ ६-" उपाघेरिष्टफलस्य आयस्य प्राप्तः हेतुत्त्वं येषु विद्यते ते उपाध्यायाः " ॥ ७- “ उपहन्यते अधेर्मानख्या व्यथाया आयः प्रातिर्यैस्ते उपाध्यायाः " यद्वा “ उपहन्यते अधियः बुद्ध रायः प्राप्तियैले उपाध्यायाः” या “ उपहन्यते अध्यायो दुर्ध्यानं यैस्ते आध्या याः " ॥ ८-पञ्चीस गुणोंका वर्णन आगे किया जावेगा ॥ ६-आचार आदि १२ अङ्ग ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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