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________________ तृतीय परिच्छेद | ( १२३ ) उसमें श्रुत से एक अर्थ का ग्रहण कर उस अर्थ से शब्द में गति करे तथा शब्द से फिर अर्थ में गमन करे; इसी प्रकार वह बुद्धिमान् पुरुष एक. योगसे दूसरे योगमें गमन करे ॥ १५ ॥ जिस प्रकार ध्यानी पुरुष शीघ्र ही अर्थ आदि में संक्रमण करता है उ सी प्रकार वह फिर भी स्वयं ही उससे व्यावृत्त (१) हो जाता है ॥ १६ ॥ इस प्रकार शनेक प्रकारोंमें जब योगी पूर्ण अभ्यास वाला हो जाता है तब उसमें श्रात्मा के गुण प्रकट हो जाते हैं तथा वह एकता के योग्य हो. जाता है ॥ १९ ॥ उत्पाद, स्थिति और भङ्ग (२) आदि पर्यायों का एक योग कर जब एक पर्याय का ध्यान करता है; उसका नाम "अविचार से युक्त एकrवं" है ॥ १८ ॥ जिस प्रकार मान्त्रिक (३) पुरुष मन्त्र के बल से सब शरीर में स्थित विष को दंश स्थान (४) में ले आता है, उसी प्रकार क्रमसे तीन जगत् के वि षय वाले मनको ध्यान से अणु (५) में स्थित करके ठहरा देना चाहिये ॥१॥ काष्ठ समूह के हटा लेनेपर शेष थोड़े ई धनवाला प्रज्वलित (६) अग्नि अथवा उससे पृथक् किया हुआ जिस प्रकार बुझ जाता है इसी प्रकार से मनको भी जानना चाहिये ॥ २० ॥ तदनन्तर ध्यान रूपी अग्निके अत्यन्त प्रज्वलित होनेपर योगीन्द्र के सब घात कर्म क्षण भर में विलीन ( 9 ) हो जाते हैं ॥ २१ ॥ ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय तथा मोहनीय, ये कर्म अन्तराय (कर्म) के सहित सहसा (८) विनाश को प्राप्त हो जाते हैं ॥ २२ ॥ तदनन्तर योगी पुरुष दुर्लभ केवल ज्ञान और केवल दर्शन को पाकर लोकालोक को यथावस्थित (९) रीति से जानता और देखता है ॥ २३ ॥ उस समय सर्वज्ञ, (१०) सर्वदर्शी (११) तथा अनन्त गुणों से युक्त होकर वह देव भगवान् पृथिवोतल पर विहार करता है तथा सुर, असुर, नर और उरग (१२) उसे प्रणाम करते हैं ॥ २४ ॥ १ - निवृत्त, हटा हुआ ॥ २- नाश ॥ ३- मन्त्रविद्या का जाननेवाला ॥ ४ - का ८- एकदम ॥ ६-ठीक यथार्थ ॥ १२- सर्प ॥ स्थान ॥ ५- सूक्ष्म ॥ ६-जलता हुआ ।। ७- नष्ट ॥ १० - सबको जाननेवाला ॥ ११- सबको देखनेवाला ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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