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________________ श्रीमन्त्रराजगुणकल्पमहोदधि ॥ विषुवत् समय (१) के आने पर जिस के नेत्र फड़के उस की मृत्यु निस्सन्देह एक दिन रात में हो जाती है ॥ ७६ ॥ ___पांच सङक्रान्तियों (२) का उल्लङ्घन कर यदि वाय मुख में चले तो मित्र और धन की हानि, निस्तेजस्त्व (३) तथा मृत्यु के बिना सब ही अन र्थों का सूचक होता है ॥ १७ ॥ ___यदि वायु तेरह सङ्क्रान्तियों का उल्लङ्घन कर वाम नासिका में चले तो रोग और उद्वेग आदि का सूचक होता है ॥ ८ ॥ __ मार्गशीर्ष की सक्रान्ति के समय से लेकर यदि वाय पांच दिन तक ( एक ही नाड़ी में ) चलता रहे तो अठारहवें वर्ष में मृत्यु का सूचक होता है ॥ ७ ॥ शरद की सङ्क्रान्ति के समय से लेकर यदि वायु पांच दिन तक ( एक ही नाड़ी में) चलता रहे तो पन्द्रह वर्ष के अन्त में मृत्यु का सूचक होता है ॥ ८॥ ___ श्रावण के प्रारम्भ (४) से लेकर यदि वायु पांच दिन सक ( एक ही नाड़ी में ) चलता रहे तो बारह वर्ष के अन्त में मृत्य का सूचक होता है ज्येष्ठ के आदि दिवस से लेकर यदि वायु दश दिन तक ( एक ही नाड़ी में) चलता रहे.तो नवें वर्ष के अन्त में निश्चय पूर्वक मृत्यु का सूचक होता है, चैत्र के आदि दिवससे लेकर यदि वाय पांच दिन तक ( एक ही नाड़ी में) चलता रहे तो छः वर्ष के अन्त में अवश्य ही मृत्यु का सूचक (५) होता है तथा माघ मास के श्रादि दिवस से लेकर यदि वायु पांच दिन तक ( एक ही नाड़ी में ) चलता रहे तो तीन वर्ष के अन्त में मृत्यु का सूचक होता है। ८१॥ २ ॥ ३ ॥४॥ __ यदि वाय सर्वत्र दो तीन तथा चार दिन तक ( एक ही नाड़ी में) च. लता रहे तो वर्ष के भागों के द्वारा उन को यथाक्रम से जान लेना चाहिये (६) ॥५॥ १-जब दिन और गत बराबर होते हैं उस समय का नाम विषवत्समय है ॥ २-एक से दूसरी में गमन करना ॥ ३-तेज का अभाव ॥ ४-प्रथम दिन ॥ ५सुचना करने वाला ॥ ६-यहां से आगे ८६ वें श्लोक से लेकर २३५ श्लोक तक के विषय को ( कालज्ञानादि को ) ग्रन्थ के विस्तार के भय से नहीं लिखा गया है। Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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