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तृतीय परिच्छेद ।
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सूर्य से उदय होने पर चन्द्र से प्राप्त होना भी कल्याणकारी है ॥ ६६ ॥
शुक्ल पक्ष में दिन के प्रारम्भ के समय ध्यानपूर्वक पड़िवाके दिन वायु के प्रशस्त (९) और अप्रशस्त ( २ ) सञ्चार (३) को देखना चाहिये, यह बायु पहिले तीन दिन तक चन्द्र में उदित होता है; तदनन्तर तीन दिन तक चन्द्र में ही सङ्क्रमण (४) करता है; फिर तीन दिन तक चन्द्र में ही सङ् क्रमण करता है, इसी क्रम से वह पूर्णमासी तक गमन करता है तथा कृष्ण पक्ष में सूर्योदय के साथ यही क्रम जानना चाहिये ॥ ६१ ॥ ६८ ॥ ६९ ॥
तीन पक्ष तक इस का अन्यथा (५) गमन होने पर छः मास में मृत्यु हो जाती है, दो पक्ष तक विपर्यास (६) होने पर अभीष्ट (9) बन्धुत्रों को विपत्ति होती है, एक पक्ष तक त्रिपर्यय (८) होने पर दारुण (९) रोग होता है तथा दो तीन दिन तक विपर्यास होने पर कलह आदि उत्पन्न होता है ॥ १२ ॥ ११ ॥
एक दो वा तीन रात दिन तक यदि वायु सूर्य नाड़ी में ही चलता रहे तो क्रम से तीन दो तथा एक वर्ष में मृत्यु हो जाती है तथा ( एक दो वा तीन रात दिन तक यदि वायु ) चन्द्र नाड़ी में ही चलता रहे तो रोग उ त्पन्न होता है ॥ ७२ ॥
यदि एक मास तक वायु सूर्य माड़ी में ही चलता रहे लो जान लेना चाहिये कि एक रात्रि दिवसमें मृत्यु होगी तथा ( यदि एक मास तक वायु) चन्द्र नाड़ी में ही चलता रहे तो धन का नाश जानना चाहिये ॥ ७३ ॥
तीनों (नाड़ियों ) के मार्ग में रहता हुआ वायु मध्याहू के पश्चात् मृत्यु का सूचक होता है तथा दश दिन तक दो ( नाड़ियों ) के मार्ग में स्थित रह कर गमन करने पर मृत्यु का सूचक होता है ॥ ७४ ॥
यदि वायु दश दिन तक चन्द्र नाड़ी में ही चलता रहे तो उद्वेग (१०) और रोग को उत्पन्न करता है तथा आधे प्रहर तक इधर उधर चलता रहे तो लाभ और पूजा आदि को करता है ॥ १५ ॥
१- श्रेष्ठ ॥ २- निकृष्ट ॥ ३ - गमन क्रिया ॥ ४ - गतिकी क्रिया ॥ ५-उलटा ॥ ६ - उलटा ॥ ७- प्रिय, इच्छित ॥ ८-उलटा ॥ ६-कठिन ॥ १०- शोक ॥
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