SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (८०) श्रीमन्त्रराजगुगकलामहोदधि । अर्थात हस्ती है, अर्थात् जो सौम्य गज है, वह ऋण अर्थात दुःख को “हन्ति” अर्थात नष्ट करता है, दुःख का कारण होनेसे ऋण नाम दुःख का है, कारण में कार्य का व्यवहार होता है, (अणम्” इस पद में “स्वराणां स्वराः" इस सत्र से प्राकारादेश हो जाता है, “हन्ताणम्” इस पद में "पदयोः सन्धिर्वा” इस सूत्र से सन्धि करने पर “अधोमनयाम्” इस सूत्रसे यकार का लोप करने पर पद सिद्धहो जाता है ] ॥ ८०-"रह” अर्थात् २थ को “तानयति” अर्थात विस्तृत करता है, अर्थात् एक स्थानसे दूसरे स्थान को ले जाता है, (“न चारिव कृदन्तेरात्र" इस सूत्र से मान्त (१) हो जाने पर “रथम्” पद बन जाता है ) “तान" नाम बैल का है, उस को “त प्र” अर्थात देखो ("नम" यह जो शब्द है उसे “हे नम,” इस प्रकार सम्बोधन रूप जानना चाहिये, अर्थात् “नमति” इस व्युत्पत्ति के करने पर नमः शब्द बनता है, उसका सम्बुद्धि (२) में “हे नम" ऐसा पद हो जाता है) ॥ ___८१-(नहीच [३] धातु वन्धन अर्थ में है, “नयते” इस व्युत्पत्ति के करने पर भाव में ड प्रत्यय के करने पर "न" शब्द बन जाता है), "न" नाम वन्धन का है, वह उपलक्षण [४] रूप है अतः दूसरी पीड़ा का भी ग्रहण होता है, उस ( वन्धन ) से जो मुक्त करता है उसे “नमोक्” कहते हैं, [णिगन्त से विच् प्रत्यय होता है ] "करिहन्ता” सिंह का नाम है, नमोक् रूप करि हन्ता है, वह किनका है कि-"प्राणम्” [ अषी, असी, धातु गति और भादान (५) अर्थ में है, तथा चकार से अनुकृष्ट [६] शोभा अर्थ में भी है अतः शोभा अर्थ वाले अर्षी धातु से ड प्रत्यय करने पर अः पद बन जाता है ] अः अर्थात शोभा देता हुआ अर्थात पुग्यवान् मनुष्य, उन्होंने इस प्रकार के अर्थात पीड़ा हारी [७] सिंह को देखा ॥ ___८२-"ता” नाम लक्ष्मी का है, उसका “भान” अर्थात् प्रासन है, [ वर्णच्यतक होनसे पान शब्द से श्रासन का ग्रहण होता है ], वह [प्रासन कैसा है कि-"नमेादरह” है, अर्थात जिसमें “नम” अर्थात नमत उदर १-मकारान्त (मकार है अन्त में जिसमें ) ॥ २-सम्बोधन के एक वचन ॥ ३-अन्यत्र धातु पाठ में " णह " धातु है ॥४-सूचनमात्र ॥ ५-ग्रहण ॥ ६-अनु. कर्षणसे आया हुआ ॥ ७-गोड़ा को दूर करने वाला ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy