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________________ द्वितीय परिच्छेद। (७६) ७५-ण' नाम ज्ञान का है, उसक। “रहणा” अर्थातू प्राप्त करते हैं, वे पुरुष “नमोच” होते हैं, (“नमन्ति” इस व्युत्पत्ति के करने पर छ प्रत्यय के करने पर न शब्द बनता है अतः ) न अर्थात् प्रणाम (१) कारी जो पुरुष हैं उन को संसार से छुड़ाते हैं, अतः उन्हें “नमोच” कहते हैं ( णिगन्त से विप् प्रत्यय होता है, रहु धातु गति अर्थ में है, यहां पर अनुस्वार का न होना चित्र के कारण जानना चाहिये )॥ ___७६-"नमो अरहंताणं” ॥ (नसि धातु कौटिल्य अर्थ में है, “नस नम्” इस व्युत्पत्ति के करने पर “नः" शब्द बनता है) "न" नाम कौटिल्य [२] का है, उस ( कौटिल्य ) को “अरहन्तः, अर्थात न प्राप्त होनेवाले पुरुष “गाम्" अर्थात् प्रकटतया (३) “श्रवन्ति” अर्थात् दीप्त होते हैं, ( यहां अव धातु से क्लिप् प्रत्यय करने पर ज शब्द बन जाता है, प्राकृत होने के कारण “स्यं जस् शसां लक्" इस सूत्र से जस् का लक हो जाता है, तथा अपभ्रंश में व्यत्यय (४) भी होता है, इसलिये भाषा का व्यत्यय होनेसे प्राकृत में भी हो जाता है) ॥ ___99-("मृदं करोति” इस व्युत्पत्ति के करने पर णिज तथा अच् प्रत्यय के करने पर म शब्द बन जाता है ) “म, अर्थात कुम्भकार (५) है, वह कैमा है कि “भरि” अर्थात् चक्र, उससे “अंहते” अर्थात दीप्त होता है, अतः वह अरि हन्ता है, (सि का लक हो जाता है), नहीं नहीं होता है, अर्थात् होता ही है, प्राः शब्द पाद पूरणा अर्थ में है ॥ ७८-“मेोक” अर्थात् कायिकी को “रहन्ताणम्” अर्थात् त्यांग करते हुए अर्थात् परिष्ठापना (६) करते हुए साधुनों को “न” होता है, तात्पर्य यह है कि प्रविधि ) से त्याग करने वाले साधुओंको “न” अर्थात् कर्मवन्ध होता है तथा विधि से त्याग करनेवाले साधुओंको तो “न” अर्थात् ज्ञान होता है, इस प्रकार विवक्षा के द्वारी दो अर्थ होते हैं ॥ ७९-अब चौदह स्वप्नों का वर्णन किया जाता है-नम प्रहीभाव अर्थात सम्यक्त्व को कहते हैं, उससे “अवति” अर्थात दीप्त होता है, ( अव धातु १८ अर्थों में है, उनमें से दीप्ति अर्थ वाला भी है ) नमो रूप जो करी १-प्रणाम करनेवाला ॥२-कुटिलता, टेढ़ापन ॥३-स्पष्ट तया, अच्छे प्रकार। ४-विपर्यय ॥५-कुम्भार ॥ ६-मलोत्सर्ग ॥ ७-विना विधिके, अविधि के साथ । Aho ! Shrutgyanam
SR No.009886
Book TitleMantraraj Guna Kalpa Mahodadhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinkirtisuri, Jaydayal Sharma
PublisherJaydayal Sharma
Publication Year1920
Total Pages294
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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